जमशेदपुर: देश में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की सबसे पुरानी तांबा खदानों में से एक झारखंड के मुसाबनी स्थित सुरदा माइंस की चमक एक बार फिर लौटने वाली है. माइंस की लीज खत्म होने की वजह से यहएक अप्रैल 2020 से पूरी तरह बंद हो गयी थी और यहां काम करने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर करीब दो हजार कर्मी बेरोजगार हो गये थे. खदान को पुन: चालू करने के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से सोमवार परमानेंट इन्वायर्नमेंट क्लीयरेंस दे गयी है, जबकि इसके लीज को रिन्यू करने का प्रस्ताव झारखंड सरकार के कैबिनट ने 9 दिसंबर 2021 को ही पारित कर दिया था. उम्मीद की जा रही है अगले पंद्रह दिनों से लेकर एक महीने के भीतर इस खदान में उत्पादन फिर से शुरू हो जायेगा.


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एक अप्रैल 2020 को मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस की इस खदान में ताला लगा था, तब पूरे इलाके में मायूसी पसर गयी थी. इससे न सिर्फ यहां काम करने वाले हजारों लोग बेकार हो गये थे, बल्कि इसके बाद से पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. कारखाने पर आश्रित छोटे-बड़े कारोबार ठप पड़ गये. बेकारी और फाकाकशी के चलते कई कामगारों और उनके परिजनों ने दम तोड़ दिया. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन मद के लगभग 3 करोड़ रुपये का भुगतान होता था. यह पैसा रुकने से मुसाबनी और आस-पास के बाजार की रौनक खत्म हो गयी है. इस खदान को दोबारा चालू कराने के लिए लड़ाई लड़नेवाले स्थानीय झामुमो विधायक रामदास सोरेन का कहना है कि इस बंदी की वजह से पूरे इलाके में हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी थी. अब राज्य सरकार के बाद केंद्रीय स्तर पर मंजूरी मिलने से कामगारों में खुशी की लहर है.


बता दें कि, पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी ग्रुप आफ माइंस का गौरवशाली इतिहास 99 साल पुराना है. ब्रिटिश काल में वर्ष 1923 में मुसाबनी में अंग्रेजों ने तांबा खनन शुरू किया था. तब इसे इंडियन कॉपर कंपनी (आइसीसी) के नाम से जाना जाता था. आजादी के बाद इसे हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड का नया नाम मिला था. मुसाबनी की खदानों और घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के प्लांट को इलाके का लाइफलाइन माना जाता था. ब्रिटिश कालीन दस्तावेजों के मुताबिक मुसाबनी की खदानों की कमाई से ही एचसीएल की 4 नई इकाइयां राजस्थान के खेतड़ी, गुजरात के झगरिया, मध्यप्रदेश के मलाजखंड और महाराष्ट्र के तलोजा में खोली गयी थीं.


मुसाबनी में हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) की कुल 7 खदानें, कंसन्ट्रेशन प्लांट एवं वर्क्‍स अवस्थित थे. अलग-अलग वजहों से वर्ष 1995से खदानों की बंदी का सिलसिला शुरू हुआ. सबसे पहले बादिया माइंस बंद हुई, इसके बाद वर्ष 2003 तक पाथरगोड़ा, केंदाडीह, राखा, चापड़ी, बानालोपा, सुरदा एवं साउथ सुरदा में तांबा की खदानों में ताला लटक गया.


काफी जद्दोजहद के बाद इनमें से एकमात्र सुरदा खदान में वर्ष 2007 में दोबारा खनन कार्य शुरू हुआ था, लेकिन समय पर लीज को विस्तार न मिलने से यह खदान भी अप्रैल 2020में बंद हो गयी. झारखंड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के अध्यक्ष धनंजय मार्डी कहते हैं कि पिछले दो सालों में खदान की बंदी और कोरोना के चलते दर्जनों कामगारों की मौत हुई है. एचसीएल प्रबंधन को फिर से खदान चालू होने पर ऐसे कामगारों के परिजनों को प्राथमिकता देनी चाहिए.


लगभग 25 मह से सुरदा खदान के बंद रहने से राज्य सरकार को लगभग भी तीन सौ करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है. खदान से राज्य सरकार को माइनिंग रायल्टी, डीएमएफटी फंड, इलेक्ट्रिसिटी, फारेस्ट रायल्टी, जीएसटी के रूप में जो राजस्व मिलता था, वह फिलहाल ठप है.


कुल 388 हेक्टेयर में फैली सुरदा माइंस की उत्पादन क्षमता 300 लाख टन प्रतिवर्ष है. एचसीएल प्रबंधन ने इसे बढ़ाकर सालाना 9 लाख टन कन्सन्ट्रेट उत्पादन की योजना बनायी है. इसके लिए झारखंड सरकार से सीटीओ (कन्सर्न टू ऑपरेट) की मांग की जायेगी. उम्मीद की जा रही है कि इससे आने वाले दिनों में एचसीएल की आर्थिक स्थिति और भी मजबूत होगी तथा रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे.


(आईएएनएस)