नई दिल्ली: बिहार में करीब सालभर पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लिए थे. उनके इस फैसले का असर अब इस साल बिहार की राजनीति में देखने को मिल रहा है. इसी साल मार्च में अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव फिर मई में जोकिहाट उपचुनाव के रिजल्ट साफ संकेत दे रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बीजेपी से दोस्ती की कीमत चुकानी पड़ रही है. सीधे शब्दों में कहें तो नीतीश कुमार की झोली से मुस्लिम वोटर छिटक रहे हैं. वहीं इसका सीधा फायदा लालू प्रसाद यादव के युवराज तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी आरजेडी को मिलता दिख रहा है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे नीतीश कुमार की बीजेपी से दोस्ती का फायदा आरजेडी को मिल रहा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मुस्लिम बहुल इलाकों में घट रहा नीतीश कुमार का जनाधार: साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर मैदान में उतरे थे. उस वक्त नीतीश कुमार खुलेआम कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ थे. अपनी इसी छवि को बचाए रखने के लिए नीतीश कुमार ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मुखालफत की थी. इस वजह से 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार आरजेडी के 'MY' (मुस्लिम+यादव) समीकरण में सेंध लगाते हुए अच्छी खासी संख्या में मुस्लिमों के वोट पाए थे. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव में उतरे तो उन्हें और भी ज्यादा मुसलमानों का समर्थन मिला. 


ये भी पढ़ें: 'चाचा' नीतीश भेद नहीं पाए 'भतीजे' तेजस्वी का 'चक्रव्यूह', 5 वजह


पिछले साल नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़कर पीएम नरेंद्र मोदी से दोस्ती गांठ ली है. इसके बाद से आरजेडी के तेजस्वी यादव लगातार आक्रामक होते जा रहे हैं. वे बीजेपी पर मुस्लिम विरोधी होने के आरोप लगाकर इसी बहाने ने नीतीश कुमार पर भी निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं. इसका सीधा फायदा आरजेडी को मिलता दिख रहा है. अररिया लोकसभा और जोकिहाट विधानसभा चुनाव में जेडीयू की अपेक्षा आरजेडी प्रत्याशी को भारी संख्या में वोट मिलना इसके संकेत हैं.


दलितों के मुद्दे पर भी नीतीश को हो रहा BJP से दोस्ती का नुकसान: हाल के दिनों में देशभर में दलितों के साथ हुई हिंसा की घटनाएं और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून को कथित तौर पर कमजोर किए जाने के आरोप बीजेपी पर लगे हैं. इस माहौल का असर नीतीश कुमार पर भी पड़ा है. राजनीति में नौसिखिया माने जा रहे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस माहौल का लाभ काफी हद तक अपने पक्ष में करने में सफल साबित हुए हैं.


ये भी पढ़ें: जोकीहाट की जीत अवसरवाद पर लालूवाद की जीत है- तेजस्वी यादव


गौर करें तो हाल के दिनों में बिहार में दलित हिंसा और प्रताड़ना की जितनी भी घटनाएं हुई हैं, उसपर तेजस्वी यादव मुखर रहे हैं. वे अपने बयानों में सीधे तौर से कहते हैं कि नीतीश कुमार जब से बीजेपी के हुए हैं, तब से वे उन्हीं की तरह मुस्लिम और दलित विरोधी हो गए हैं.


दिख रहा है नीतीश से दलितों के मोहभंग का असर: महागठबंधन से नीतीश कुमार के अलग होने के बाद से जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उसके वोटिंग पैटर्न पर गौर करें तो साफ तौर से पता चलता है कि दलितों का नीतीश कुमार+बीजेपी से मोहभंग हो रहा है. नीतीश के पाले से छिटके दलित वोटर आरजेडी पर भरोसा दिख रही है.


नीतीश के इसी राजनीतिक फैसले का लाभ उठाने के लिए तेजस्वी यादव ने एनडीए के खेमे के सबसे बड़े दलित चेहरे और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को अपने साथ ले आए हैं. वहीं नीतीश कुमार ने दरकते मुस्लिम वोटरों को रोकने के लिए बैकडोर से 'दिन बचाओ, देश बचाओ रैली' करवाई, लेकिन इसका भी उन्हें फायदा होता नहीं दिख रहा है.


ये भी पढ़ें: तेजस्वी का नीतीश कुमार पर तंज- 'डोनाल्ड ट्रंप से विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं क्या?'


वहीं उपचुनावों के परिणाम से साफ संकेत मिल रहे हैं कि तेजस्वी यादव पिता लालू प्रसाद यादव के बनाए MY (मुस्लिम+यादव) समीकरण में 'दलितों' का वोट जोड़ने में सफल होते दिख रहे हैं. बिहार में करीब 11 फीसदी दलित हैं. नीतीश कुमार और बीजेपी की दोस्ती के बाद से मुस्लिम और यादव वोटर एकजजुट होकर आरजडी पर भरोसा कर रहे हैं. अगर दलितों का एकमुश्त वोट आरजेडी को जाता है तो तेजस्वी के सत्ता के करीब पहुंचने की राह आसान हो सकती है.



नीतीश की पार्टी से छिटक रहे दलित चेहरे: बीजेपी से दोस्ती का खामियाजा नीतीश कुमार को पार्टी के भीतर भी उठाना पड़ रहा है. जेडीयू के बड़े दलित नेता श्याम रजक कई मौकों पर कह चुके हैं कि वह किसी भी पार्टी का हिस्सा बनने से पहले दलित हैं. वे बीजेपी के खिलाफ झंडा बुलंद करने वाले गुजरात के दलित विधायक जिग्नेश मेवानी के साथ भी बैठक कर चुके हैं. इसके अलावा जेडीयू में दलितों का बड़ा चेहरा रहे उदय नारायण चौधरी ने भी पार्टी छोड़ दिया है. वे भी आरोप लगा चुके हैं बीजेपी दलित विरोधी है और नीतीश कुमार उनके साथ है.


रामनवमी के मौके पर बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हुईं. ऐसे वक्त पर तेजस्वी यादव खुलेआम बयान देते रहे कि ये दंगे बीजेपी अपने राजनीतिक स्वार्थ में करा रही है और सीएम नीतीश कुमार गठबंधन धर्म निभाने के लिए आंख मूंदे हुए हैं. तेजस्वी अपने इन बयानों के जरिए अल्पंख्यक प्रेम जाहिर करने की कोशिश करते रहे.