Birsa Munda Jayanti: अंग्रेजों के सपनों में भी आते थे बिरसा मुंडा, 10 पॉइंट में पढ़िए वीरता की अमर गाथा

बिरसा मुंडा का स्वतंत्रता और समानता का सपना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अनमोल योगदान है. उनके ‘उलगुलान’ ने अंग्रेजों को चुनौती दी और आदिवासियों को जागरूक किया. यहां उनके जीवन और संघर्ष के दस प्रमुख बिंदु दिए गए हैं.

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प्रारंभिक जीवन

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची जिले के उलिहातु गांव में हुआ. उनका बचपन आदिवासी समाज के शोषण को देखते हुए बीता, जिससे उनमें अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस जागा.

 

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शिक्षा और जागरूकता

बिरसा ने चाइबासा के जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ाई की, लेकिन जल्द ही उन्होंने ईसाई मिशनरियों के भेदभाव और अंग्रेजों के अत्याचार को समझ लिया. इससे उन्हें आदिवासी समुदाय की स्वतंत्रता का सपना देखने की प्रेरणा मिली.

 

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उलगुलान का आह्वान

बिरसा ने अंग्रेजों, जमींदारों और साहूकारों के खिलाफ आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ‘उलगुलान’ (विद्रोह) शुरू किया. यह आंदोलन लगभग 6 वर्षों तक चला और इसमें हजारों आदिवासी शामिल हुए.

 

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आदिवासियों का संघर्ष

अंग्रेजों ने आदिवासियों की जमीन और जंगल पर कब्जा करने के लिए 1878 का वन कानून बनाया, जिससे आदिवासियों की आजीविका छिन गई. बिरसा ने जंगल और जमीन पर आदिवासियों के पुश्तैनी अधिकार की लड़ाई लड़ी.

 

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गिरफ्तारी और शहादत

अंग्रेजों ने बिरसा को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की. किसी ने उनके ठिकाने का पता बता दिया, जिससे उनकी गिरफ्तारी हो गई. जेल में यातनाओं के कारण 9 जून 1900 को बिरसा का निधन हो गया. उनकी मृत्यु का कारण हैजा बताया गया, लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें धीमा ज़हर दिया गया था.

 

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सामाजिक सुधारक

बिरसा ने आदिवासी समाज में व्याप्त अंधविश्वासों जैसे भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र, बलि प्रथा आदि के खिलाफ अभियान चलाया और स्वच्छता व स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया.

 

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अबुआ दिशुम अबुआ राज

बिरसा ने ‘अबुआ दिशुम अबुआ राज’ का नारा दिया, जिसका मतलब है ‘हमारा देश, हमारा राज’. यह नारा आदिवासियों में अपनी आजादी के प्रति उत्साह और गर्व भरने के लिए था.

 

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धर्म और संस्कृति का संरक्षण

बिरसा ने आदिवासियों को उनके प्राचीन धर्म और संस्कृति के प्रति जागरूक किया. उन्होंने भगवान का एक नया रूप बताया, जो आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करेगा और उन्हें न्याय दिलाएगा.

 

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उलगुलान का प्रभाव

अंग्रेज भले ही इस विद्रोह को दबाने में सफल हुए, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा. इस विद्रोह के बाद अंग्रेजों को 1908 में छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट लाना पड़ा, जो आदिवासियों के जंगल-जमीन की रक्षा करता था.

 

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विरासत और प्रेरणा

बिरसा मुंडा का संघर्ष आज भी आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन और संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रेरणा देता है. उनका जीवन स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है, जो हमें आज भी प्रेरित करता है.

 

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