Bihar Lok Sabha Election Result: 28 जनवरी, 2004. यह दिन इतिहास के पन्नों में तो दर्ज हो ही गया है और अब लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद से इस दिन का महत्व अब काफी बड़ा हो गया है. यह वहीं दिन है, जब नीतीश कुमार ने इंडिया से अपना नाता तोड़ा था और एनडीए का दामन थाम लिया था. दोपहर से पहले नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और शाम होने से पहले नीतीश कुमार ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी. ऐसे में सवाल उठता है कि आज अगर नीतीश कुमार इंडिया के साथ होते हो तस्वीर कुछ और होती. नीतीश कुमार के पाला बदलने से ही चुनाव में इतना बड़ा अंतर आ गया. आलम यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा से लेकर सभी विपक्षी दल अब नीतीश... नीतीश... की रट लगाए पड़े हैं. नीतीश सबके हैं... यह नारा यहां चरितार्थ होता दिख रहा है. इस तरह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 28 जनवरी 2024 का दिन टर्निंग प्वाइंट साबित होता दिख रहा है.​


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नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ने के बाद जहां सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि पहली बैठक की मेजबानी भी की. पहली बैठक तक नीतीश कुमार ड्राइविंग सीट पर थे लेकिन जैसे ही पहली बैठक हुई, कांग्रेस ने उसके बाद ड्राइविंग सीट हड़प ली और नीतीश कुमार दोयम दर्जे के नेता हो गए. बेंगलुरू बैठक में गठबंधन के नाम पर भी नीतीश कुमार की राय को अनसुना कर दिया गया था. नीतीश कुमार की कई सारी बातों को अनसुना कर दिया गया था. इसलिए नीतीश कुमार उस बैठक से जल्दी निकल गए थे और पटना के लिए रवाना हो गए थे. 


उसके बाद मुंबई में इंडिया गठबंधन की बैठक हुई. उस बैठक में भी नीतीश कुमार को कोई खास तवज्जो नहीं मिली. तब के जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह पर आरोप लगा था कि उन्होंने नीतीश कुमार के लिए अच्छी तरह लॉबिंग नहीं की थी. मुंबई बैठक में वैसे तो कोई फैसला नहीं हो पाया था और आने दिल्ली में बैठक कराने पर सहमति जताई गई थी. दिल्ली बैठक में जब नीतीश कुमार के सामने मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम पर अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने एकराय बनाने की कोशिश की तो नीतीश कुमार असहज हो गए थे. हालांकि मल्लिकार्जुन खड़गे ने खुद ही इसे भविष्य के लिए छोड़ने की बात कहकर बैठक को आगे बढ़ाया था. 


उसके बाद नीतीश कुमार ने पटना वापस आकर पहले जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाई. 28 दिसंबर को राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ललन सिंह को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के ठीक एक महीने बाद नीतीश कुमार ने 28 जनवरी को एनडीए में एंट्री और इंडिया से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया. नीतीश कुमार के इंडिया से मोहभंग के पीछे की कई कहानी नजर आती है. एक तो वे कांग्रेस की कार्यप्रणाली से परेशान थे. दूसरा, जातीय जनगणना का श्रेय कभी राहुल गांधी तो कभी तेजस्वी लेते रहे. शिक्षकों की भर्ती भी तेजस्वी अपने खाते में भुनाना चाहते थे. 


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इसके अलावा, सबसे बड़ा कारण यह रहा कि जिस इंडिया को उन्होंने खुद बनाया, उस इंडिया की ओर से पीएम पद का उम्मीदवार तो छोड़िए, गठबंधन का संयोजक भी नहीं बनाया गया. नीतीश कुमार की मेहनत को कांग्रेस दोनों हाथों से बटोरना चाहती थी, लेकिन नीतीश कुमार के रहते ऐसा कैसे संभव हो पाता.


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