Begusarai Seat Profile: लोकसभा चुनाव के लिए मैदान सजने लगा है. बस अब उम्मीदवारों का इंतजार है. इस बार बिहार की बेगूसराय सीट काफी चर्चा में है क्योंकि यहां से इस वक्त बीजेपी के फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सांसद हैं. उन्होंने पिछले चुनाव में जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को हराया था. कम्युनिस्टों के गढ़ में भी भगवा लहराया था. CPI की टिकट पर उतरे कन्हैया कुमार 4 लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. गिरिराज की ये जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि कन्हैया कुमार को कांग्रेस पार्टी और राजद का भी समर्थन था. इस सीट का चुनावी इतिहास काफी पुराना है. 


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1977 और 1989 को छोड़ दें तो 1999 तक यहां कांग्रेस और वामपंथियों के बीच ही उठापटक देखने को मिली. यहां की जनता ने कांग्रेस के बाद वामपंथियों को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया. 2004 में पहली बार यहां समाजवादियों की एंट्री हुई और जेडीयू के ललन सिंह चुनाव जीते. 2009 में जेडीयू के मोनाजिर हसन लोकसभा पहुंचे. दो बार बीजेपी का भी कमल खिला. 2014 में पहली बार भोला सिंह ने कमल खिलाया तो 2019 में गिरिराज सिंह ने भगवा फहराया. 


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सिर्फ एक बार जीता मुस्लिम प्रत्याशी 


इस सीट के आजतक के नतीजे देखें तो सिर्फ एक बार ही मुस्लिम प्रत्याशी को जीत मिली है, वह भी बीजेपी के समर्थन से. मोनाजिर हसन पहले मुस्लिम उम्मीदवार हैं, जो 2009 में जेडीयू की टिकट पर लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे. एनडीए का हिस्सा होने का कारण जेडीयू उम्मीदवार को बीजेपी का समर्थम मिला था. मोनाजिर हसन अब नीतीश कुमार का साथ छोड़कर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल ज्वाइन कर चुके हैं. मोनाजिर हसन की दम पर एनडीए गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा इस सीट पर अपना दावा ठोंक सकते हैं. 


क्या हैं इस सीट के चुनावी मुद्दे?


हर साल आने वाली बाढ़ यहां की सबसे बड़ी समस्या है. नगर क्षेत्र में जलजमाव से लोग काफी दुखी रहते हैं. नगर की बढ़ती जनसंख्या के बीच सिकुड़ती सड़कों से लोगों को जाम की दिक्कत काफी सामना करना पड़ता है. टूटी सड़कें और उच्च शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी का नहीं होना आदि बड़े चुनावी मुद्दे हैं.


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जातीय समीकरण और सामाजिक समीकरण
 
बेगूसराय लोकसभा सीट में भूमिहारों की संख्या करीब 4.75 लाख है. वहीं मुसलमानों की जनसंख्या 2.5 लाख के करीब बताई जा रही है. कुर्मी-कुशवाहा की दो लाख और यादवों की संख्या करीब 1.5 लाख है. जाति आधारित ये आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां की राजनीति भूमिहार समाज के इर्द-गिर्द घूमती रही है. पिछले 10 लोकसभा चुनावों में से 9 के विजयी उम्मीदवार इसी समाज से रहे हैं. हालांकि उनकी पार्टियां जरूर अलग-अलग रही हैं.