Bihar Politics: बिहार की राजनीति कब कौन सा रूप ले ले, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता है. कहा जाता है कि राजनेता ऐसे काम करते है कि दाएं हाथ से कुछ करें तो बाएं हाथ तक को पता नहीं चलता है. राजनेता कब दोस्त के दुश्मन बन जाए और कब दुश्मन के दोस्त, इसके कयास लगाना ही बेमानी है. हालांकि अब एक बार फिर बिहार की राजनीति में खेला हो सकता है. कयास लगाए जा रहे है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर से पलटी मार सकते हैं.   


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2013 में नीतीश ने मारी पहली पलटी 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें 10 साल पहले 'सुशासन बाबू' के नाम से जाना जाता था. वहीं अब इधर उधर के चक्कर में 'पलटू राम' बन गए है. जब भी नीतीश राजनीति में असहज हुए तब-तब उन्होंने अपना सियासी पार्टनर बदला है. बात है साल 2005 की, जब नीतीश पर लोगों ने भरोसा जताया था. 2005 से 2012 तक सब कुछ ठीक ठाक था, नीतीश ने भी सब की उम्मीदों पर खरे उतरने की पूरी कोशिश की. साल 2012 में जब नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर आया तब साल 2013 में नीतीश कुमार ने NDA से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया. जिसके बाद नीतीश को अपने बड़े भाई (लालू यादव) की याद आई. जिसके बाद करण-अर्जुन की जोड़ी यानी लालू-नीतीश सत्ता को संभालने लगे. हालांकि करण-अर्जुन की जोड़ी भी टूट गई और नीतीश बीजेपी के पास आ गए. 


बात है साल 2013 की जब बीजेपी ने नीतीश को लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था तो ये बात नीतीश कुमार को रास नहीं आई और उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ दिया. 2014 में लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत मिला और 10 साल बाद बीजेपी ने सत्ता में धूमधाम से वापसी की. 2014 के लोकसभा चुनाव में ही नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ बिहार में चुनाव लड़े थे और उन्हें केवल 2 सीटें मिली थी. जिसके बाद इस हार का सदमा नीतीश सह नहीं पाए और उन्होंने सीएम की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया. नीतीश ने कुर्सी अपनी सरकार के मंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी और वे खुद बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की तैयारी में जुट गए. 


साल 2015 के लोकसभा चुनाव में जुटे नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया. इस महागठबंधन के साथ नीतीश ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी और शानदार जश्न के साथ एक बार फिर बिहार की सत्ता पर कब्जा किया. 


साल 2017 में दूसरी बार नीतीश ने मारी पलटी 
वक्त गुजर ही रहा था करीब दो साल पूरे होने वाले थे लेकिन उससे पहले ही महागठबंधन में दरार आने लगी. जहां एक ओर नीतीश कुमार ने साल 2017 में नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर बीजेपी का समर्थन कर दिया. वहीं दूसरी ओर सीबीआई ने लालू यादव और तेजस्वी यादव संग उनके परिवार के कई सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हुआ. जिसकी आंच धीरे-धीरे नीतीश तक भी पहुंचने लगी. जिसके बाद माहौल को देखते हुए नीतीश ने लालू को मैसेज डाला कि तेजस्वी को पद से इस्तीफा देना चाहिए. मगर लालू नहीं माने और फिर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन की सरकार गिर गई. हालांकि कुछ ही घंटों में नीतीश बीजेपी के समर्थन में मुख्यमंत्री बन गए. वहीं सत्ता पलट का ये पूरा घटनाक्रम नाटकीय तरीके से पूरे 15 घंटे के भीतर हुआ. वहीं साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की वापसी हुई, मगर नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर आई. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहें. 


साल 2022 में नीतीश ने मारी तीसरी बार पलटी 
बात है साल 2022 की, जब नीतीश कुमार तीसरी बार ब्रेक के लिए तैयार थे. जेडीयू ने बीजेपी पर  पार्टी तोड़ने की साजिश का आरोप लगाया था. जिसके बाद 15 अगस्त से पहले ही 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने ऐलान किया था कि जदयू-भाजपा गठबंधन खत्म हो गया. जिसके बाद अगले दिन ही नीतीश आरजेडी के समर्थन में फिर से मुख्यमंत्री बने. हालांकि उस वक्त आरजेडी ने नीतीश के साथ किसी भी गठबंधन के लिए मना कर दिया था. वहीं तेजस्वी नीतीश से गले मिलकर काफी खुश थे.     


क्या चौथी पलटी मारने के लिए तैयार है नीतीश? 
कयासों के अनुसार, नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मार सकते है और ये नीतीश की चौथी पलटी होगी. 


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