Lok Sabha Election 2024: बिहार में एनडीए की तस्वीर काफी हद तक क्वियर हो चुकी है. वहीं महागठबंधन के अंदर अभी भी सीट शेयरिंग को लेकर घमासान मचा हुआ है. बिहार में इंडी अलायंस को लीड कर रहे राजद सुप्रीमो लालू यादव ने अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं किया है, इसके बावजूद वह टिकट बांटने में लगे हैं. लालू यादव की देखा-देखी वामदल भी अपनी पसंद की सीटों पर दावा ठोंकने में जुटे हैं. कांग्रेस की परंपरागत मानी जाने वाली सीटों पर भी लालू यादव अपनी पार्टी के नेताओं को सिंबल दे रहे हैं. इससे कांग्रेस पार्टी के साथ खेला होता दिख रहा है. लालू यादव के इस रवैये से जहां बिहार कांग्रेस के नेता मुंह फुला रहे हैं तो वहीं कांग्रेस आलाकमान सिर्फ मुंह ताक रहे हैं. वामपंथी दल भी आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें उनकी मांगी सीटें मिलेंगी या नहीं. 


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INDIA में नहीं निकल रहा समीकरण


महागठबंधन का अभी राजद, कांग्रेस और वामदल ही हिस्सा हैं. वहीं प्रदेश में लोकसभा की 40 सीटें हैं. नीतीश कुमार के रहते हुए कहा जा रहा था कि उनके कारण सीटों का बंटवारा नहीं हो रहा है, क्योंकि वह अपनी सिटिंग 16 सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उनके जाने के बाद कांग्रेस को सबसे ज्यादा खुश हुई थी, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि अब उसे कम से कम 10-11 सीटें आसानी से मिल जाएंगी. लेकिन लालू यादव ने नीतीश कुमार के कोटे की सीटें भी हड़प लीं. अब राजद 26-28 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि कांग्रेस 10 सीटों की डिमांड कर रही है. वामदल भी 5 सीटों की मांग कर रहे हैं.  


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बिहार NDA में सबकुछ सेट हो गया


दूसरी ओर एनडीए में थोड़ी-बहुत तनातनी जरूर हुई इसके बावजूद सबकुछ शांति के साथ निपटा लिया गया. अगर केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस को छोड़ दें तो एनडीए में बीजेपी के सीट शेयरिंग वाले फॉर्मूले से हर साथी संतुष्ट है. बीजेपी और जेडीयू ने अपने-अपने कैंडिडेट भी उतार दिए हैं. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी अपने हिस्से की एक-एक सीट से खुद उतर सकते हैं. बस सिर्फ चिराग पासवान की पार्टी के उम्मीदवार आने बाकी हैं. इस राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए सियासी पंडितों का कहना है कि नीतीश कुमार ने समय रहते अपनी पार्टी को लालू यादव के कहर से बचा लिया. 


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नीतीश कुमार फजीहत से बच गए


2022 में जब नीतीश कुमार एनडीए छोड़कर महागठबंधन में गए थे तो उन्हें पीएम पद का ख्वाब दिखाया गया था. इसके लिए लालू ने उन्हें विपक्षी दलों को एकजुट करने का काम सौंपा. नीतीश ने पूरी ईमानदारी से यह काम किया और इसमें कामयाब भी हो गए थे. इसके बाद उनके साथ खेला होना शुरू हो गया. जिस गठबंधन को उन्होंने बनाया उसे कांग्रेस लीड करने लगी. उधर उनको बिहार की सत्ता से भी बेदखल करने की साजिश होने लगी. हालांकि, नीतीश को सही समय में इसका पता चल गया और उन्होंने लालू यादव से दूरी बना ली. वह वापस बीजेपी के पास लौट गए. इस तरह से उन्होंने अपनी पार्टी और अपना सम्मान दोनों बरकरार रखा.