पटनाः Lok Sabha Election 2024: निश्चित रूप से चिराग पासवान के लिए वह दौर झंझावातों का था, अपनों से मिले दर्द से जूझने का था, नई चुनौतियों से रूबरू होने का समय था और उन चुनौतियों से जूझकर आगे बढ़ने का भी समय था. चिराग पासवान सारे झंझावातों, दगा और चुनौतियों से जूझे और आगे बढ़े भी. अंदर से खुद को मजबूत रखते हुए आज वो इस मुकाम पर पहुंच गए हैं कि जिस मोड़ से पर वो खड़े हुए और आगे बढ़े, आज उसी मोड़ पर अपने चाचा यानी पशुपति कुमार पारस को ला खड़ा किया है. पिता की मौत के बाद जब चिराग को अपने चाचा की सबसे अधिक जरूरत थी, तब चाचा ने दगा दे दिया. और न केवल दगा दिया, बल्कि चिराग के पापा स्वर्गीय रामविलास पासवान की विरासत को हड़प करने की नियत भी दिखा दी. सत्ता के लालच में परिवार की मर्यादा तार तार होती रही और चिराग पासवान असहाय होकर चुपचाप देखते रहे. समय का इंतजार करते रहे और जब खुद का समय बलवान हुआ तो पूरी ताकत से उठ खड़े हुए. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जो भाजपा पासवान परिवार के विघटन के समय धृतराष्ट्र की भूमिका में थी, उनकी ताकत को देखकर अब वहीं भाजपा चिराग पासवान की ढाल बनकर खड़ी हो गई. हाजीपुर सीट पर चिराग पासवान विरासत की लड़ाई लड़ते रहे और भाजपा से इसमें दखल देने की मांग की तो भाजपा ने सबसे पहले पशुपति कुमार पारस को समझाने की कोशिश की. पारस जब नहीं मानें तो भाजपा एकतरफा चिराग पासवान के फेवर में आ गई और आखिरकार चिराग पासवान ने हाजीपुर की विरासत हथिया ली.


आज पशुपति कुमार पारस की हैसियत देख लीजिए. भाजपा ने उन्हें राज्यपाल बनने की पेशकश की है और उनके भतीजे प्रिंस पासवान को नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री बनाने को कहा गया है. चंदन सिंह को छोड़कर पशुपति कुमार पारस की पार्टी के सारे सांसद पाला बदल चुके हैं. वीणा देवी पहले से चिराग पासवान के करीब आ चुकी थीं तो एक दिन पहले महबूब अली कैसर ने भी पशुपति कुमार पारस को दगा ​दे दिया.


अब पशुपति कुमार पारस के पास केवल 3 सांसद हैं. एक तो वे खुद, दूसरे प्रिंस पासवान और तीसरे चंदन सिंह. प्रिंस पासवान ने भी पीएम मोदी के नेतृत्व में आस्था जताई है तो पशुपति कुमार पारस ने दोपहर बाद 3 बजे पार्टी की आपात बैठक बुलाई है. पशुपति कुमार पारस की पार्टी इस बैठक में भाजपा की ओर से दिए गए प्रस्तावों पर विचार करेगी और आगे का फैसला लेगी. 


पशुपति कुमार पारस के पास एक विकल्प यह भी है कि वे एनडीए का साथ छोड़कर महागठबंधन के पाले में आ जाएं, जैसा कि तेजस्वी यादव की ओर से पेशकश की गई है. इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पशुपति कुमार पारस महागठबंधन का कुछ फायदा करा पाएंगे और खुद पशुपति कुमार पारस को क्या फायदा हो सकता है. 


चिराग ने तो पार्टी टूटने के बाद भी अपने कैडर को संभाल लिया पर क्या पशुपति कुमार पारस ऐसा कर पाएंगे. पार्टी बनने के बाद से लेकर आज तक पशुपति कुमार पारस ने अपना दम नहीं दिखाया है. एक भी पब्लिक रैली तक नहीं कर पाए हैं, ताकि सहयोगियों और विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास करा सकें. कुल मिलाकर बात वहीं हो गई है कि जहां से चिराग ने बूझे मन से आगे बढ़ने की कोशिश की थी, आज पशुपति कुमार पारस उसी दोराहे पर आ खड़े हुए हैं.


यह भी पढ़ें- Bihar Cabinet Expansion Live Updates: 4 बजे नीतीश कैबिनेट विस्तार संभव, विधायकों के पास फोन आना हुआ शुरू