Lok Sabha Election 2024: तारीख: जुलाई 18, 2023. मौका था एनडीए की बैठक का. तब INDIA ब्लॉक की चहुंओर चर्चा थी और INDIA की बैठक के जवाब में भाजपा ने एनडीए की बैठक बुलाई थी. उस बैठक में आधिकारिक रूप से चिराग पासवान वाले लोजपा की एनडीए में वापसी हुई थी. चिराग पासवान ने उस बैठक में पीएम मोदी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था और पीएम मोदी ने चिराग पासवान को गले लगा लिया था. किसी भी सहयोगी दल को गठबंधन में इस तरह से स्वागत शायद ही हुआ हो. उसी समय तय हो गया था कि पीएम मोदी ने चिराग पासवान की पीठ पर अपना हाथ रख दिया यानी अपना आशीर्वाद दे दिया था. पशुपति कुमार पारस को तभी समझ जाना चाहिए था कि चिराग पासवान की पीएम मोदी और भाजपा की नजर में क्या हैसियत होने वाली है. अब उस समय पशुपति कुमार पारस नहीं समझ पाए तो यह उनकी राजनीतिक नासमझी कही जा सकती है. आज पशुपति कुमार पारस प्रेस कांफ्रेंस में यह कहते देखे जा रहे हैं कि उनके साथ विश्वासघात किया गया, लेकिन राजनीति में कभी कभी इशारों का बड़ा महत्व होता है. पीएम मोदी ने चिराग पासवान को आशीर्वाद देकर वो इशारा कर दिया था. पशुपति कुमार पारस का अचैतन्य मन उस इशारे को भांप नहीं पाया और आज इसलिए वो रालोजपा के साथ धोखा की बात कर रहे हैं. 


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इसके अलावा 28 जनवरी को नीतीश कुमार का 9वीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण का मौका था. चिराग पासवान इस बात से चिंतित थे कि नीतीश कुमार के आने से एनडीए में उनकी हैसियत फिर कम की जा सकती है और उन्होंने भाजपा आलाकमान को अपने मन की बात कही. भाजपा ने चिराग पासवान को कितनी गंभीरता से लिया कि नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, चिराग पासवान को अपने साथ चार्टर्ड प्लेन में लेकर पटना आए थे.


भाजपा चिराग पासवान को कैसे नजरंदाज कर सकती है. भाजपा ने अपनी ओर से सर्वे कराया, आरएसएस का फीडबैक आया, तमाम स्वतंत्र एजेंसियों ने सर्वे में चिराग पासवान को पशुपति कुमार पारस पर भारी बताया. चिराग पासवान युवा हैं. उनमें अभी बहुत राजनीति बाकी है और तेजस्वी यादव के जवाब में भाजपा के अंदर न सही, गठबंधन में तो मुकाबले का एक युवा खड़ा है, जो बिहारी अस्मिता की बात करता है. तेजस्वी यादव की तरह चिराग पासवान भी सीएम नीतीश कुमार को खुला चैलेंज करते हैं. 


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तेजस्वी यादव अगर नीतीश कुमार को बिहार के पिछड़ेपन का जिम्मेदार मानते हैं तो चिराग पासवान उसमें लालू यादव को भी बराबर का साझीदार मानते हैं और चिराग की यह बात भाजपा को सूट करती हे. सोशल मीडिया पर चिराग पासवान युवा बिहारी का नारा देते हैं. पलायन का मसला उठाते हैं और लालू प्रसाद के अलावा नीतीश कुमार को भी कटघरे में खड़ा करते हैं. 


दूसरी ओर, पशुपति कुमार पारस ने केंद्र में मंत्री बनने के बाद न तो बिहार में अपनी राजनीतिक जमीन बनाई और न ही अपने कार्यकर्ताओं से कोई संवाद स्थापित करने की कोशिश की. इसके उलट संघर्ष के दिनों में चिराग पासवान ने बिहार में जन आशीर्वाद यात्रा निकाली और लोगों से जुड़े रहे.  आज जो भी हो रहा है वो बहुत पहले दीवार पर लिखी गई इबारत के बरक्श सामने आ रहा है.