Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में अब राजनीतिक हलचल काफी बढ़ चुकी है. चुनाव से पहले हुई जातीय गणना के बाद अब कुछ भी छिपा नहीं है. लिहाजा सभी दलों का पूरा फोकस जातीय घेराबंदी करने की है. अपनी जन विश्वास यात्रा पर निकले तेजस्वी यादव अपनी पार्टी को अब सिर्फ MY (मुस्लिम-यादव) तक सीमित नहीं रखना चाहते हैं. वह अब राजद से BAAP यानी बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, पुअर को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. तेजस्वी यादव की इस रणनीति को ध्वस्त करने के लिए NDA भी अपनी कमर कस चुका है. NDA अब अपनी पूरी शक्ति के साथ तेजस्वी के परंपरागत MY (मुस्लिम-यादव) वोटबैंक में ही सेंधमारी करने को देख रहा है. 


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जातीय गणना के बाद एनडीए की नजर सबसे बड़ी जाति समुदाय में से एक यादव पर है, जिसकी आबादी बिहार में चौदह प्रतिशत से कुछ अधिक है. लिहाजा, NDA अब यादव बिरादरी को राजद से अलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है. यही वजह है कि एनडीए की ओर से बिहार विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर यादव नेता को बिठाया गया है. अध्यक्ष की कुर्सी पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता नंद किशोर यादव तो वहीं डिप्टी स्पीकर के पद पर जेडीयू के वरिष्ठ विधायक नरेंद्र नारायण यादव विराजमान हो चुके हैं. इतना ही नहीं नीतीश कैबिनेट में वीजेंद्र यादव को मंत्री पद दिया गया है. सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल विस्तार में बीजेपी कोटे से भी कम से कम 2 यादव विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. इसके अलावा जरूरत पड़ी तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को फिर से बुलाया जा सकता है.


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एनडीए चारो तरफ से तेजस्वी की घेराबंदी करने में जुटा है. राजपूत वोटबैंक को साधने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी बिहार दौरा तय हो चुका है. हालांकि, अभी तक उनके बिहार आने की तारीख का ऐलान तो नहीं हुआ है. गैर यादव ओबीसी समाज को साधने के लिए यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी बिहार की धरती पर कदम रख चुके हैं. गैर यादव ओबीसी जातियों को साधने में वे अपनी महारत हासिल कर चुके हैं. खुद पीएम मोदी का जमीन पर उतरना बाकी है. बीजेपी नेता अक्सर कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बड़ा ओबीसी नेता कोई नहीं हो सकता. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मोदी के मैदान में उतरते ही समीकरण रातों-रात बदल जाते हैं, पिछले कई चुनाव इसका उदाहरण हैं. उनका कहना है कि भले ही यादव वोटबैंक की पहली पसंद राजद हो, लेकिन सभी बिरादरियों को साधने में अगर तेजस्वी ने इसकी घेराबंदी में कमी कर दी तो ये वोटबैंक भी बिखर सकता है.