Bihar Politics: ऐसे दूर हुई नीतीश से चिराग, मांझी, नड्डा और शाह की नाराजगी, सब कुछ हो गया ऑल सेट!
नीतीश कुमार NDA के साथ थे तो भी उनके लिए सबसे बड़ा दुश्मन चिराग पासवान थे और पासवान भी ऐसा ही मानते थे. चिराग को लगता था कि नीतीश कुमार ने उनकी पार्टी को तोड़ने का काम पर्दे के पीछे से किया.
Bihar Politics: नीतीश कुमार NDA के साथ थे तो भी उनके लिए सबसे बड़ा दुश्मन चिराग पासवान थे और पासवान भी ऐसा ही मानते थे. चिराग को लगता था कि नीतीश कुमार ने उनकी पार्टी को तोड़ने का काम पर्दे के पीछे से किया. जबकि नीतीश को लगता था कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने भाजपा के साथ मिलकर साजिश रची और इसकी वजह से उनकी पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. हालांकि नीतीश ने 2022 में जब NDA का दामन थामकर भाजपा पर इल्जाम लगाते हुए महागठबंधन का हाथ थामा तो उनकी पार्टी में टूट शुरू हो गई. सबसे पहले आरसीपी सिंह को पार्टी ने निकाल फेंका, फिर उपेंद्र कुशवाहा पार्टी से अलग हो गए.
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इसके बाद जीतन राम मांझी अपनी पार्टी हम के साथ महागठबंधन से बाहर हो गए. फिर NDA में उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी की एंट्री हुई. ऐसे में अब बिहार में सियासी तूफान चरम पर है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि नीतीश जल्द ही नौंवी बार बिहार में सीएम पद की शपथ लेंगे. भाजपा इस बार सरकार के गठन में फिर से जेडीयू के साथ होगी.
अब खबर आ रही है कि नीतीश कुमार इस्तीफा देने के बाद रविवार को एक बार फिर सीएम पद की शपथ ले सकते हैं. इसके लिए भाजपा की तरफ से पार्टी के विधायकों का समर्थन पत्र तैयार किया जा रहा है जो कुछ सियासी शर्तों के साथ उन्हें सौंपा जाएगा. इधर खबर आ रही है कि जेपी नड्डा और अमित शाह रविवार को पटना आ सकते हैं.
इससे पहले नीतीश के NDA में वापसी की अटकलों के बीच चिराग पासवान के दिल्ली आवास पर उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की मुलाकात भी हुई थी. जहां इसको लेकर वृहत चर्चा हुई थी. ऐसे में अब बताया जा रहा है कि बिहार में ऑल सेट है. भाजपा ने बिहार में NDA के सहयोगी दलों को इस परिस्थिति के लिए तैयार कर लिया है. मांझी तो पहले से ही हामी भरकर बैठे थे. चिराग पासवान अमित शाह की बात पर मान गए. वहीं उपेंद्र कुशवाहा को भाजपा के नेताओं ने इसके लिए तैयार कर लिया.
मतलब नीतीश की एनडीए में एंट्री वाली दिक्कत खत्म कर दी गई है. ऐसे में नीतीश को बस भाजपा की उस चिट्ठी का इंतजार है जो उनकी ताजपोशी कराएगी. हालांकि लालू-तेजस्वी को इससे खास फर्क नहीं पड़ रहा है क्योंकि उनकी पार्टी के विधायक अभी तक स्थिर हैं. वहीं कांग्रेस के लिए यह स्थिति जरूर चिंताजनक है क्योंकि दावा किया जा रहा है कि पूर्णिया में पार्टी की विधायकों की बैठक से ज्यादातर विधायक नदारद रहे. साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि उसके ज्यादातर विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं..