Bihar Politics: बिहार में जिस तेजी से सियासत ने अपना रूख बदला उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. इस सब में एक बात साफ रही कि नीतीश अपनी जगह पर ही कायम रहे. बदलाव और समझौता महागठबंधन और भाजपा यानी NDA के हिस्से आया. हालांकि नीतीश का इस तरह राजनीति में पलटी मारना कोई नई बात नहीं थी. वह पहले भी ऐसा कर चुके थे. 


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17 महीने में ही नीतीश को महागठबंधन का साथ पसंद नहीं आने लगा. उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ा और सीएम पद से इस्तीफा देते हुए कहा कि सारी मेहनत तो वह कर रहे थे और सारा श्रेय राजद ले रही थी. ऐसे में वह अब नए गठबंधन के साथ जाने की तैयारी कर चुके हैं. वह इस्तीफा देकर आए और कुछ ही घंटे बाद फिर राजभवन में सीएम पद की शपथ ले रहे थे. इस बार उन्होंने कहा कि वह पहले भी भाजपा के साथ थे, बीच में राह अलग हो गई थी. फिर से वापस आ गए हैं और अब हमेशा से साथ रहेंगे. मतलब वह जहां से वहां वापस आ गए हैं और अब उनका कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता है. 


एक सीएम के तौर पर चौथी बार नीतीश यूटर्न ले रहे थे. ऐसे में आंकड़े गवाह हैं कि नीतीश का यूटर्न उनकी पार्टी को नुकसान ही देता रहा है. एक समय जदयू बिहार में भाजपा से बड़ी पार्टी थी लेकिन अब उसके पास सीटें ही विधानसभा में कम है और वह तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है.  


साल 2005 के चुनाव से नजर डालें तो पता चलेगा कि तब भाजपा जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा, भाजपा के पास तब 55 और जदयू के पास 88 सीटें थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में इसी गठबंधन ने बिहार में 32 सीटें जीत ली. साल 2013 में मोदी के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित होने से नीतीश नाराज दिखे और उन्होंने गठबंधन तोड़ लिया. ऐसे में बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू के पास सिर्फ दो सीटें आई. 


फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश, तेजस्वी और कांग्रेस के साथ आए. जदयू इस चुनाव में 101 में से 71 सीटें ही जीत पाई. जबकि भाजपा के साथ मिलकर 2010 में लड़े गए चुनाव में उनकी पार्टी ने 115 सीटें जीती थी. 2017 में महागठबंधन से अलग हुए और फिर नीतीश ने एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाई. जदयू को 2019 के लोकसभा चुनाव में तो इसका फायदा मिला लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू 50 का आंकड़ा भी नहीं छू सकी. 115 सीट पर लड़ने वाली जदयू को सिर्फ 43 सीटों से संतोष करना पड़ा. 


नीतीश कुमार ने एक नहीं चार बार यूटर्न लिया यह साल रहा 2013, 2015, 2022 और 2024 इन सालों में नीतीश के यूटर्न से भले वह बिहार में सरकार बचाने में कामयाब रहे और मुख्यमंत्री का सेहरा उनके सिर पर ही सजता रहा लेकिन उनकी पार्टी कमजोर होती चली गई.