पटना: Bihar Politics: बिहार की सियासत में शुक्रवार का दिन एकदम से गर्माहट पैदा करने वाला था. नीतीश कुमार के घर पर अचनाक लंबे समय बाद लालू यादव और तेजस्वी यादव एक साथ मिलने पहुंचे और फिर इसी के कुछ देर बाद लालू यादव के घर पर बंद लिफाफे में ईडी का संदेश आ गया कि दिल्ली में ईडी कार्यालय में पूछताछ के लिए उनको आना है. दरअसल नीतीश से अचानक लालू और तेजस्वी की इस तरह की मुलाकात के बाद ही बिहार में मीडिया और राजनीति दोनों में चर्चाएं तेज हो गई. हालांकि मीडिया इसे बिहार में किसी बड़े राजनीतिक खेले के तौर पर देख रही थी. जबकि इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी कुछ और था और वह सभी की नजर से बचा हुई है. कहीं तेजस्वी और लालू अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए तेजस्वी की जगह राजश्री की ताजपोशी की तैयारी में तो नहीं हैं सवाल यही सबसे बड़ा है जो सबसे छूट रहा है?  


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वैसे आपको बता दें कि इससे पहले केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने नीतीश के NDA में लौटने की संभावना को लेकर अपने एक साक्षात्कार में यह कह दिया था कि इस पर विचार किया जाएगा. अब क्या था इतना ही काफी था बिहार के सियासी भूचाल के लिए. मीडिया में यह खबर तेजी से फैली की नीतीश को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं कि वह पलटी मार सकते हैं इसी को लेकर असमंजस में पड़े लालू और तेजस्वी ने नीतीश से मुलाकात की है. हालांकि नीतीश के बेहद करीबी और उनके सरकार में मंत्री विजय चौधरी ने इसको लेकर कह दिया की यह मुलाकात तो स्वभाविक है. इसमें अस्वभाविक क्या है? लेकिन, मीडिया अच्छी तरह से समझ गई थी कि इसमें अस्वभाविक क्या है. 


दरअसल नीतीश कुमार के द्वारा जदयू की कमान संभालने और ललन सिंह का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से विदाई के बाद से ही नीतीश और लालू के बीच मेल-मिलाप का सिलसिला कम हो गया. वहीं तेजस्वी ने भी नीतीश के हाथ में जदयू की कमान जाते ही अपना विदेश दौरा रद्द कर दिया. इसके बाद लंबे समय तक नीतीश और लालू की मुलाकात नहीं हुई और फिर लालू के आवास पर नीतीश उनसे मकर संक्रांति के मौके पर मिले भी तो वह गर्मजोशी दोनों के बीच नहीं दिखी जैसी पहले दिखती थी. वहीं बिहार सरकार के कई कार्यक्रमों में मंच से तेजस्वी और वहां लगे पोस्टर से ही वह गायब नजर आए. अब ऐसे में कौन मानेगा कि बिहार में सबकुछ ठीक था. 


दूसरी तरफ नीतीश को लेकर लगातार यह दावा किया जाता रहा कि वह कभी भी पाला बदलकर NDA में शामिल हो सकते हैं. ऐसे में मीडिया में बताया गया कि इसी हड़बड़ाहट में नीतीश कुमार से मिलने लालू और तेजस्वी पहुंच गए. जबकि तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि ED के द्वारा पूछताछ के लिए तेजस्वी यादव को कई समन जारी किए गए हैं और वह किसी ना किसी बहाने से इसमें हाजिर नहीं हो रहे हैं. ऐसे में केजरीवाल और हेमंत सोरेन की तरह ही तेजस्वी को भी यह एहसास है कि अब ईडी उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ कर सकती है. ऐसे में उनके बाद पार्टी का क्या होगा. लालू भी जानते हैं कि ऐसी स्थिति में पार्टी को संभालने और तेज फैसले लेने के लिए उसको एक नेतृत्व की जरूरत है. ऐसे में राजनीति के जानकार मानते हैं कि लालू परिवार में तेजस्वी की पत्नी राजश्री इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है. ऐसे में नीतीश के पास दोनों इस प्रस्ताव को लेकर भी गए होंगे. 


अगर नीतीश NDA में नहीं जाते हैं सरकार चलती रहती है और तेजस्वी को ईडी गिरफ्तार कर लेती है तो ऐसे में जहां लोकसभा चुनाव के लिए इतनी मेहनत से गठबंधन बना है. उसमें कई फैसले लेने हैं. पार्टी को सीट शेयरिंग में कितनी सीटें चाहिए उसपर बात होनी है. सरकार में पार्टी बन रहे और पार्टी का तेजस्वी के बाद भी नेतृत्व एकदम बेहतर चलता रहे, इसके लिए राजश्री सबसे उपयुक्त साबित होंगी. वैसे आपको बता दें कि राजश्री पढ़ी लिखी हैं और साथ ही उनपर कोई मामला भी नहीं है. रही बाद परिवारवादी कहलाने की तो राजद के वोटर और नेता तो पहले से ही इसे मानते हैं और उनको ऐसा मानने में कोई परहेज भी नहीं है. ना हीं उनको इससे कोई अंतर पड़ता है. 


दूसरी तरफ एक वह हालात याद कीजिए जब जनता दल की सरकार लालू यादव चला रहे थे और उनपर चारा घोटाले का आरोप लगा और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. तब लालू यादव ने सत्ता का हस्तांतरण अपनी पत्नी राबड़ी देवी को कर दिया था. ऐसे में अब तस्वीर का एक दूसरा पहलू इस समय यह भी है कि राजद का सुचारू संचालन हो पाए और तेजस्वी की ईडी के द्वारा गिरफ्तारी पर पार्टी के हक में जो फैसले लिए जाने हैं उसके लिए राजश्री का आना जरूरी है. शायद तेजस्वी और लालू यादव इसलिए भी नीतीश कुमार से मिलने गए थे जिसे राजनीति के जानकार इस मिलन में तस्वीर का दूसरा पहलू बता रहे हैं.