बगहा:Bihar News: बिहार के एकमात्र जनजाति बालिका उच्च विद्यालय हरनाटांड़ की बदहाल स्थिति पर उच्च न्यायालय ने कल्याण विभाग और राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के निदेशक से जवाब तलब करते हुए विद्यालय की स्थिति सुधारने के लिए की गई कार्रवाई का ब्यौरा तलब किया है. जिसको लेकर 29 नवंबर की तिथि निर्धारित की गई है. बगहा के थारू, धांगड़ आदिवासी बहुल इलाकों में संचालित इस आवासीय विद्यालय में कुव्यवस्था ने विभाग की पोल खोल कर रख दिया है. कोर्ट द्वारा शिक्षा विभाग के अधिकारियों को तलब करने के बाद प्रशासनिक महकमे में भी हड़कंप मच गया है.  


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1981 से विद्यालय संचालित
दरअसल थरुहट की राजधानी हरनाटांड में 1981 से जनजाति बालिका विद्यालय संचालित हो रहा है. यह विद्यालय पहले कमेटी और ट्रस्ट द्वारा संचालित था लेकिन वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने इसे राजकीय विद्यालय में तब्दील कर यहां दसवीं कक्षा तक पठन पाठन का आदेश निर्गत किया. उसके ठीक एक वर्ष बाद 2014 में इस विद्यालय को 10+2 का भी दर्जा दे दिया गया. लेकिन संसाधनों के नाम पर आज भी यहां कुछ मुहैया नहीं कराया गया है. आलम यह है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में छात्राएं स्कूल छोड़ रही हैं. अचानक छात्राओं की संख्या घटने के बाद बिहार आदिवासी अधिकार फोरम के प्रमोद कुमार सिंह और अशोक कुमार थारू ने उच्च न्यायालय पटना में जनहित याचिका दायर की है. 


हाई कोर्ट ने जताई चिंता
न्यायालय द्वारा संज्ञान लेने के बाद विद्यालय भवन बनाने का आदेश भी हुआ लेकिन वह भी 10 वर्षों से ठंडे बस्ते में है. विद्यालय के प्राचार्य लक्ष्मीकांत काजी का कहना है कि जब सरकार ने विद्यालय को राजकीय किया तो शुरू में बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, पोशाक व मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना का लाभ दिया गया. उस दौरान विद्यालय में नौवीं और दसवीं कक्षा में 400 से 500 छात्राएं थी और छात्राओं की ज्यादा संख्या के कारण 5 सेक्शन में कक्षाएं बांट कर संचालित होती थी. जब विभाग ने पोशाक, छात्रवृत्ति और साईकिल योजना का लाभ देना बंद कर दिया और विद्यालय के संसाधनों को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया तो बच्चों की संख्या घटने लगी है और इस वक़्त नौवीं कक्षा में 50 छात्राएं तो वहीं दसवीं में महज 25 छात्राएं ही बची हैं.


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सभी योजनाएं खटाई में पड़ी
जनहित याचिका दायर करने वाले अशोक कुमार बताते हैं कि पूरे बिहार में महज एक जनजाति बालिका विद्यालय है और उसकी स्थिति भी काफी दयनीय है लिहाजा उन्होंने पीआईएल दाखिल कर न्यायालय के ध्यान में यह बात लाई है. अब उच्च न्यायालय ने इसे गंभीरता से लिया है. जिसके बाद बिहार सरकार और शिक्षा विभाग द्वारा विद्यालय में भवन, बाउंड्री समेत इनडोर और आउटडोर प्ले ग्राउंड बनाने का आदेश भी पारित हुआ है. लेकिन ये सभी योजनाएं खटाई में पड़ गई है और सरकार द्वारा अधिग्रहण किए जाने के वर्षों बाद भी यहां किसी संसाधन को बढ़ावा नहीं दिया गया है.


इनपुट- इमरान अजीज