UNESCO की लिस्ट में शामिल हुआ लंगट सिंह कॉलेज का खगोलशाला, जानें कितनी पुरानी है वेधशाला
Heritage List of Endangered Observatories: यूनेस्को (UNESCO)ने लंगट सिंह कॉलेज में स्थित 106 साल पुरानी तारामंडल खगोलीय वेधशाला को महत्वपूर्ण लुप्तप्राय वेधशालाओं की विरासत सूची में शामिल कर लिया है.
मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के लंगट सिंह कॉलेज में स्थित 106 साल पुरानी तारामंडल खगोलीय वेधशाला को अब यूनेस्को (UNESCO)ने महत्वपूर्ण लुप्तप्राय वेधशालाओं की विरासत सूची में शामिल कर लिया है. जिसके बाद शहर में मध्य में स्थित 106 साल पुरानी वेधशाला के अब पुनर्जीवित होने की उम्मीद बढ़ गई है. पुरानी वेधाशाला को यूनेस्को की हेरिटेज लिस्ट में शामिल होने के बाद लोग इसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं.
उपेक्षा से हुआ वेधशाला का क्षरण
एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ ओपी राय ने कहा कि नेशनल कमीशन फॉर हिस्ट्री ऑफ साइंस के सदस्य और दिल्ली कॉलेज के एक पूर्व प्रोफेसर जेएन सिन्हा ने वेधशाला की ओर यूनेस्को का ध्यान आकर्षित करने का काम वर्षों पूर्व शुरू किया था. तब से इसे विश्व विरासत सूची में शामिल करने को लेकर मेरा प्रयास लगातार जारी था. जिसका परिणाम हुआ कि यूनेस्को का इस ओर ध्यान गया. उन्होंने बताया कि वेधशाला और तारामंडल ने 1970 के दशक की शुरुआत तक संतोषजनक ढंग से काम किया. बाद में शासन की उपेक्षा की वजह से वेधशाला का नियमित रूप से क्षरण होता रहा. वर्तमान में यह वेधशाला पूरी तरह से खराब पड़ी है. वेधशाला में कई महंगी मशीनें या तो खो गई हैं या कबाड़ हो गई हैं. इस प्राचीन वेधशालाओं में शामिल वेधशाला का उपकरण चोरी हो जाने के कारण जरूरी कलपुर्जे भी नहीं मिल रहे हैं.
आर्यभट्ट ने तरेगना में बनाई थी वेधशाला
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर एवं देश की वेधशालाओं पर शोध करने वाले जेएन सिन्हा के शोध में बताया कि 1500 वर्ष पहले महान खगोलविद आर्यभट्ट ने तरेगना कस्बे में वेधशाला बनाई थी. बता दें कि तरेगना से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर लंगट सिंह कॉलेज है.
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1916 में उत्तर भारत के दूसरे वेधशाला व तारामंडल का निर्माण
बता दें कि लंगट सिंह कॉलेज की स्थापना 1899 में हुई थी. शहर के मध्य में स्थित ये कॉलेज 60 एकड़ में फैला हुआ है. एलएस कॉलेज में 1916 में उत्तर भारत के दूसरे वेधशाला व तारामंडल का निर्माण किया गया. 70 के दशक तक इनका शैक्षणिक उपयोग भी किया जाता था, लेकिन उसके बाद इसके बाद उपयोग का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है.
इनपुट : मणितोष कुमार