VAISHALI: सारण एंबुलेंस प्रकरण अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि बिहार के वैशाली जिले से सिस्टम की पोल खोलने वाली एक और तस्वीर सामने आई है. दरअसल, जिले के महनार प्रखंड के हसनपुर दक्षिणी पंचायत में कोरोना मरीज राम उदगार सिंह का निधन 8 मई को हो गया था. 


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इसके बाद उसके परिजन और ग्रामीण लगातार महनार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर मनोरंजन सिंह को शव का अंतिम संस्कार करने की मांग कर रहे थे. तकरीबन 20 घंटे तक भी शव वाहन एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं हो सकी. 


तब मजबूरन डॉक्टर साहब खुद ही मृतक के घर हसनपुर दक्षिणी पंचायत पहुंचे और खुद पहले पीपीई किट पहना इसके अलावा वहां के स्थानीय मुखिया मुकेश सिंह ने भी हिम्मत दिखाई और पीपीई किट पहनकर शव को कवर किया और खुद ही शव को कंधे पर उठाकर घर से तकरीबन 1 किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे श्मशान घाट पर पहुंचे.


इस दौरान उनके साथ अस्पताल के दो और कर्मी ने भी हिम्मत दिखाई और उन्होंने भी पीपीई किट पहन कर उनका साथ दिया. इस बारे में पूछे जाने पर महनार सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर मनोरंजन सिंह ने खुलकर तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि मानवता के नाते यह सब मैंने किया है.


अब इस मामले में राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है. महनार चिकित्सा प्रभारी द्वारा कंधे पर कोरोना पीड़ित का शव ढोने मामले पर पप्पू यादव ने कहा कि वैशाली सिविल सर्जन पर केस होना चाहिए. डॉक्टर कंधे पर शव ढोते हैं और सिविल सर्जन को कुछ पता ही नहीं है. वाह रे सिस्टम, वाह रे नेता, वाह रे सरकार, क्या यही है स्वास्थ्य व्यवस्था? क्या यही है लोकतंत्र?


वहीं, इस बारे में वैशाली के सिविल सर्जन डॉक्टर इंद्रदेव रंजन से पूछे जाने पर उन्होंने शव वाहन और उस पर काम करने वाले लोगों के लापरवाही के कारण हो रही परेशानी को कारण बताया है.
चिकित्सा पदाधिकारी के द्वारा कंधे पर शव रखकर घाट तक पहुंचाए जाने मामले पर उन्होंने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि इस बारे में मुझे कोई जानकारी ही नहीं है.


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हालांकि, महनार के चिकित्सा प्राधिकारी ने ऑफ द रिकॉर्ड यह भी कहा है कि इसकी जानकारी वरीय पदाधिकारियों को दे दी गई है. अब सवाल उठता है कि इस विकट परिस्थिति में स्वास्थ्य विभाग अपनी मजबूरियों का रोना ऐसे मामलों पर रोएगा जिसे आसानी से सॉल्व किया जा सकता है, तब आम जनों की सेवा कैसे हो पाएगी.


(इनपुट- विकास आनंद)