पटना : बिहार में मचे सियासी घमासान के बीच कार्यवाहक राज्‍यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने शुक्रवार को नीतीश कुमार के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि निराशा की स्थिति में राजनीतिक बयानबाजी उचित नहीं है। गौर हो कि नीतीश ने कल आरोप लगाया था कि राज्यपाल दिल्‍ली में ‘उच्चतम स्तर’ पर लिखी गई पटकथा का अनुसरण कर रहे हैं ताकि केंद्र की ओर से खरीद फरोख्त के लिए दी गई लाइसेंस पर अमल की जा सके।


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राज्‍यपाल ने कहा है कि नीतीश कुमार कुछ भी बोलने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन सत्‍ता के लिए ज्‍यादा उतावलापन ठीक नहीं है। नीतीश कुमार चाहते थे कि सीएम पर फैसला 48 घंटे के अंदर हो जाए, यह उनका उतावलापन है और इसी कारण से वो सियासी बयानबाजी कर रहे हैं। जब सदन की बैठक 20 फरवरी को पहले से तय है तो इतनी जल्दी क्या है? उन्‍होंने कहा कि लोग बहकावे न आएं। जनवरी में ही यह तय हो गया था कि 20 फरवरी से दोनों सदनों का बजट सत्र बुलाया जाएगा। नीतीश ने नौ फरवरी को संख्‍या बल का हवाला देकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। उतावला हो जाना और सियासी बयानबाजी करना गलत है। राजनीति का स्तर गिर जाना है बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अब तो राजनेता संवैधानिक पद पर भी बैठे लोगों के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं।


त्रिपाठी ने कहा कि नीतीश कुमार को कुछ भी कहने की पूरी आजादी है लेकिन लोगों को इससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। नीतीश चाहते थे कि मैं 48 घंटे के अंदर मुख्यमंत्री बदल डालूं। लेकिन यह संवैधानिक तौर पर संभव नहीं है। उन्‍होंने कहा कि हमने कानूनी विशेषज्ञ की राय और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पढ़ने के बाद 11 की रात फैसला ले लिया कि 20 फरवरी को विधानसभा के संयुक्‍त सत्र में राज्‍यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद मांझी विश्‍वास मत पेश करेंगे और उस पर वोटिंग होगी। दो दिनों में कौन-सी देरी हो गई जो नीतीश राजनीतिक बयानबाजी करने लगे। उन्‍होंने कहा कि मांझी ने भी मुझसे मिलकर बहुमत होने का दावा किया। अब ऐसी स्थिति में कोई भी फैसला विधानसभा के पटल पर ही संभव है। इसलिए मैंने संविधान में दिए गए प्रावधानों के मुताबिक फैसला लिया। जहां तक ज्‍यादा समय दिए जाने की बात है तो विशेष सत्र आनन-फानन में बुला पाना संभव नहीं है, जबकि पहले से ही बजट सत्र की तारीफ 20 फरवरी तय है। उन्‍होंने कहा कि पूरी संवैधानिक प्रक्रिया पर उंगली उठाना और राजनीतिक बयान देना एकदम गलत है।


गौर हो कि नीतीश ने गुरुवार को मांझी को तत्काल बहुमत साबित करने के लिए कहे जाने की बजाए 20 फरवरी तक का समय दिए जाने के निर्णय को अस्वीकार करते हुए कहा कि पहले राज्यपाल की ओर से फैसला करने में देरी और उसके बाद उन्हें (मांझी) अधिक समय देना यह प्रदर्शित करता है कि यह दिल्ली में लिखी गई पटकथा के अनुरुप किया गया है और खरीद-फरोख्त के लाइसेंस पर अमल करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया है।