पटनाः Caste Based Census in Bihar: शुरू होने से पहले ही राजनीतिक बयानबाजी का केंद्र बनी बिहार की जातीय जनगणना को लेकर बड़ी खबर आई है. राज्य में हो रही जातीय जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. याचिका में कहा गया है कि 'जनगणना अधिनियम के तहत राज्य सरकार को जनगणना का अधिकार ही नहीं है. यह प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय के आधार पर शुरू की गई है. बिना विधानसभा से कानून पास किए इसे करवाया जा रहा है. याचिका में इस दलील के साथ इसे रद्द करने की मांग की गई है. 


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7 जनवरी से शुरू हुई थी जनगणना
बिहार में महागठबंधन सरकार ने शनिवार (7 जनवरी)  को जातिगत जनगणना शुरू की थी. समाधान यात्रा पर निकले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा इसके लिए कहा था 'यह कार्य समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए मददगार साबित होगी.  सीएम नीतीश ने कहा कि जाति की गणना के साथ-साथ लोगों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन भी करवा रहे हैं. इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.' बिहार सरकार के इस कदम की बीजेपी ने आलोचना की है. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि नीतीश कुमार अपने स्वार्थ के कारण उपजाति की जनगणना नहीं करवा रहे हैं. नीतीश कुमार से अनुरोध है कि वो झूठ बोलना बंद करें. वह बताएं कि उपजाति का अर्थ क्या है?'


प्रशांत किशोर ने कही थी ये बात
जातिगत जनगणना को लेकर जन सुराज यात्रा पर निकले प्रशांत किशोर ने भी टिप्पणी की थी. उन्होंने इसे समाज में विभेद लाने वाला और उन्माद फैलाने वाला बताया था. प्रशांत किशोर ने कहा कि 'जातिगत जनगणना समाज को जातीय गुट में बांटने की तैयारी है. इसके जरिए सिर्फ और सिर्फ जनता की आंख में धूल झोंकी जा रही है. इस जनगणना के पीछे की नियत और मंशा क्या है, इसे समझना चाहिए. उन्होंने सवाल उठाया कि जनगणना का बाद आप उसका करने क्या वाले हैं. इस जनगणना का कोई वैधानिक आधार नहीं है. नीतीश सरकार राजनीति करने के लिए जनगणना करवा रही है. जनगणना केंद्र का विषय है.'


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