Akshaya Navmi Vrat Katha: जानिए क्या है अक्षय नवमी की व्रत कथा, आज होगी आंवले की पूजा
Akshaya Navami 2022: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुराणों में अक्षय नवमी कहा गया है. जिस प्रकार अक्षय तृतीया के दिन का महत्व अक्षय भंडार के लिए होता है, ठीक इसी तरह अक्षय नवमी, कभी न क्षय होने वाले आरोग्य को प्रदान करती है.
पटना: Akshaya Navami 2022: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुराणों में अक्षय नवमी कहा गया है. जिस प्रकार अक्षय तृतीया के दिन का महत्व अक्षय भंडार के लिए होता है, ठीक इसी तरह अक्षय नवमी, कभी न क्षय होने वाले आरोग्य को प्रदान करती है. आरोग्य के इस अक्षय भंडार का स्त्रोत और प्रतीक आंवले को माना गया है, यही वजह है कि अक्षय नवमी की तिथि को आंवले के फलदार वृक्ष की पूजा की जाती है.
नवमी तिथि आज मनाई जा रही है, इसकी वजह ये है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 01 नवंबर 2022 को रात 11 बजकर 04 मिनट से शुरू हुई है. वहीं इसका समापन 02 नवंबर 2022 को रात 09 बजकर 09 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि को देखते हुए आंवला नवमी का पर्व 02 नवंबर को मनाया जा रहा है.
यह है लोक कथा
अक्षय नवमी को लेकर एक लोककथा प्रचलित है. एक महिला को बहुत दिनों से संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी. एक बार किसी तांत्रिक के बहकावे में आकर उसने देवी को एक बालक की बलि दे दी. देवी इससे प्रसन्न तो नहीं हुईं बल्कि महिला को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया. कोढ़ से परेशान महिला इधर उधर मारी मारी फिरती रही.
गंगा माता ने बताया उपाय
एक दिन वह गंगा किनारे पहुंची तो गंगा माता से स्नान की अनुमति मांगी और पाप क्षमा करने की विनती की. गंगा मां ने स्नान की अनुमति तो दी, लेकिन कहा कि पाप से उबार पाने की शक्ति उनमें भी नहीं है, तुमने एक बालक की हत्या का अक्षम्य अपराध किया है. ये सुनकर महिला विलाप करने लगी. तब उसकी करुण पुकार सुनकर गंगा मां ने कहा कि एक उपाय तुम्हें बता सकती हूं.
अक्षय नवमी व्रत का दिया सुझाव
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि बहुत पवित्र मानी गई है. इस दिन देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और आंवले के वृक्ष रूपी श्रीहरि का पूजन करती हैं. तुम भी इसी तिथि को आंवले के वृक्ष का पूजन करो, कठिन व्रत के साथ साधना करो और पूजन के बाद इसी आंवले का सेवन करो तो तुम्हारा ये रोग दूर हो जायेगा. गंगा माता के बताए अनुसार महिला ने प्रत्येक कार्तिक शुक्ल की नवमी का 11 वर्ष तक अनुष्ठान किया. इससे वह रोगमुक्त हुई .
आज तक है आंवला को पूजने की परंपरा
इस पुण्यक व्रत के फलस्वरूप वह रूपवान हो गई, जिसे पति ने पुनः अपना लिया साथ ही वह एक तेजस्वी पुत्र की माता भी बनी. आंवला वृक्ष की यह महिमा जग प्रसिद्ध हो गई और तबसे इसके पूजन की लोक परम्परा चल पड़ी. आज भी आंवला वृक्ष का पूजन करके उसके नीचे परिवार के साथ खीर खाने की परंपरा है. इसे अरोग्य वर्धक माना गया है.