पटना : Bihar Caste Census News: बिहार में जातीय जनगणना शुरू होने के साथ ही इसको लेकर सियासत भी खूब हो रही है. इसको लेकर कई दल इस बात का संदेह जाहिर करने लगे हैं कि इसकी बदौलत समाज में वैमनस्यता बढ़ेगी. बिहार में इसको लेकर सियासत करते हुए भाजपा के नेता लगातार कहते रहे हैं कि सर्वे का आधार आर्थिक होना चाहिए था ताकि सरकारी जनसुविधाओं का हर आदमी को लाभ मिल पाता जिसको इसकी जरूरत है. 


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अब बिहार में हो रही जातीय जनगणना के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी गई है.  इस याचिका में बताया गया है कि 'जनगणना अधिनियम के तहत राज्य सरकार को गणना का अधिकार ही नहीं है. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि यह प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय के आधार पर शुरू हुई है. जबकि बिना विधानसभा से कानून पास कराए इसे करवाया जा रहा है. याचिका में इस दलील के साथ इसे रद्द करने की मांग की गई है.' इस याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा कि जातीय जनगणना को लेकर बिहार सरकार का फैसला अवैध, मनमाना, तर्कहीन, असंवैधानिक और कानून के अधिकार से हटकर है. 


अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई 13 जनवरी को होगी. ऐसे में नीतीश सरकार के जातीय जनगणना के फैसले को रद्द करने की गुहार लगाते हुए कहा गया है कि यह भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है ऐसे में इस पर फैसला दिया जाए.   


बिहार सरकार के खिलाफ यह याचिका नालंदा के रहने वाले अखिलेश कुमार ने लगाई है, इसमें साफ कहा गया है कि जब बिहार विधानसभा से यह विधेयक पारित ही नहीं कराया गया है तो फिर केवल सर्वदलीय बैठक के आधार पर जारी 6 जून 2022 की अधिसूचना कानूनी तौर पर मान्य ही नहीं है. जबकि इसी के आधार पर यह जनगणना कराई जा रही है. 


याचिकाकर्ता ने इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट के उस संविधान पीठ के फैसले का भी हवाला भी दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातीय और सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगना गलत है. ऐसे में याचिकाकर्ता ने मांग की है कि बिहार में फिर जातीय जनगणना क्यों कराई जा रही है, इस तरह तो समाज को बांटने की कोशिश हो रही है.


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