Patna: राजधानी पटना को अक्सर हाईटेक बनाने की बात चलती है, स्मार्ट सिटी के तौर पर पटना को विकसित किया जा रहा है, यहां मेट्रो भी चलाने की तैयारी है. इसी के तहत पूरे पटना में कोरोड़ों की लागत से ट्रैफिक लाइट लगाई गईं लेकिन आज यही ट्रैफिक लाइट जी का जंजाल बन चुकी हैं और लगभग 90 फीसदी ट्रैफिक लाइट्स मेंटेंनेंस के अभाव में खराब हो चुकी हैं. इन लाइट्स के खराब होने से ना सिर्फ सड़क जाम की समस्या से लोगों को दो चार होना पड़ रहा है बल्कि आए दिन इनकी वजह से दुर्घटनाएं भी हो रही हैं.


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26 करोड़ की लागत से लगाई गई थी ट्रैफिक लाइट्स
बता दें कि राजधानी पटना को जाम से निजात दिलाने के लिए 2016 में 26 करोड़ की लागत से पटना के विभिन्न इलाकों में ट्रैफिक लाइट्स लगाने का काम शुरू हुआ था. करोड़ों रुपए खर्च कर ट्रैफिक सिग्नल लगाए गए लेकिन आज राजधानी की 90 फीसदी ट्रैफिक लाइट्स खराब हो चुकी हैं. जो चालू भी हैं, आए दिन उनमें समस्या आती है. 


नीदरलैंड की कंपनी ने लगाई थी ट्रैफिक लाइट्स
बुडको ने नीडरलैंड की कंपनी को ट्रैफिक सिग्नल लगाने का ठेका दिया. राजधानी में लगभग 100 जगहों पर विदेशी कंपनी ने ट्रैफिक लाइट्स लगाई, जिसपर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद आज तक राजधानी में जाम की समस्या से लोगों को निजात नहीं मिल सकी है. सिग्नल की खराबी से ना सिर्फ आम आदमी बल्कि ट्रैफिक जवानों को भी काम करने में परेशानी होती है. ज्यादातर जगहों पर ट्रैफिक लाइट्स कबाड़ बन चुके हैं, तो वहीं कई जगहों पर सड़क बनाने के दौरान ट्रैफिक सिग्नल्स को उखाड़ दिया गया.


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इधर, आम लोगों का भी कहना है कि ट्रैफिक पुलिस चालान काटने में तो आगे रहती है लेकिन अपने खुद के संसाधन खराब पड़े हुए हैं तो ये लापरवाही किसकी जवाबदेही है? लोगों का कहना है कि पुलिस जब फाइन कर सकती है तो फिर ट्रैफिक लाइट्स की खराबी को लेकर क्यों कुछ नहीं करती है? सिग्नल खराब होने की वजह से दुर्घटनाएं भी होती हैं.


मामले पर नहीं बोलते ट्रैफिक अधिकारी
वहीं, जब इस बाबत ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई तो विभाग के अधिकारी ने इस मसले पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया. दूसरी ओर बुडको का पूरे मामले पर कहना है कि उनका काम सरकार के दिए गए कार्यों को नियत समय पर पूरा कर सम्बंधित विभाग को सौंप देना है. अब सम्बंधित विभाग की जिम्मेदारी है कि वो संसाधनों को कैसे दुरुस्त रखता है.