Bihar Political Crisis: बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार ने यू-टर्न लिया है. आइए हम आपको बताते हैं वो पांच कारण जिसके कारण नीतीश कुमार पांच साल बाद फिर बीजेपी से अलग हो गए हैं. 


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वजह नंबर 1
जेडीयू को ये अहसास हो गया था कि बिहार में बीजेपी उसकी कीमत पर आगे बढ़ रही है. 2020 के चुनाव में बिहार की सबसे बड़ी पार्टी नंबर 3 की पार्टी बन गई. साफ है कि नीतीश का अपना वोटबैंक बीजेपी की तरफ खिसक रहा था.


वजह नंबर 2
बीजेपी का विश्वासघात-हाल ही में जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि 2020 में जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई थी तो इसकी वजह ये नहीं थी कि नीतीश का जनाधार घटा. वजह थी साजिश. चिराग पासवान को जेडीयू के खिलाफ खड़ा किया गया था. उन्होंने बीजेपी का नाम तो नहीं लिया लेकिन ये जग जाहिर है कि चिराग ने किसके इशारे पर ये खेल किया था. उन्होंने अपने उम्मीदवार जेडीयू के खिलाफ तो उतारे लेकिन बाकी जगहों पर बीजेपी के लिए सीटें छोड़ दीं. 


वजह नंबर 3
हाल ही में पटना में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने बीजपी संयुक्त मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कह दिया कि सारी रिजनल पार्टियां खत्म हो जाएंगी और बचेगी सिर्फ बीजेपी. अब इससे सीधा संदेश जेडीयू के लिए और क्या हो सकता था.


वजह नंबर 4
महाराष्ट्र से सबक-नीतीश नहीं चाहते थे कि आरसीपी सिंह (RCP Singh) जैसे किरदार में बीजेपी को बिहार का एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) मिल जाए और उसके कंधे पर बंदूक रखकर बीजेपी जेडीयू को निशाना बना डाले. इसलिए नीतीश ने वक्त रहते कदम उठाया.


वजह नंबर 5
विचारधारा का टकराव
उग्र हिंदुत्व की राह पर चल पड़ी बीजेपी के साथ नीतीश कुमार जितने दिन और रहते उतना ही उनपर अपनी विचारधारा से कटने का आरोप लगता. कई ऐसे मुद्दे हुए जिनपर चाहे अनचाहे नीतीश को बीजेपी की लाइन का समर्थन करना पड़ा. लेकिन कई मुद्दे ऐसे आए जिसपर नीतीश ने अलग लाइन ली. जाति जनगणना, NRC आदि. अगर नीतीश अब भी बीजेपी के साथ रहते हैं तो मुसलमान, महादलित उससे कटते जाएंगे. शायद इस बात का अहसास नीतीश को हो गया था. 


और एक आखिर बात. नीतीश 71 साल के हो चुके. बिहार के सियासी जीवन में काफी कुछ हासिल कर चुके, अब अगर उन्हें राष्ट्रीय राजनीति के लिए टर्न लेना है तो रास्ता विपक्ष की गलियों से होकर निकलता है न कि एनडीए के मार्ग पर.


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