अजीत सिंह: विरासत में मिली सियासत, पिता की खराब सेहत देख विदेश से भेजा गया था बुलावा
RLD के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह (Ajit Singh) का आज कोरोना से निधन हो गया है. अजित सिंह की मंगलवार रात को तबीयत से खराब हो रही थी.
Patna: RLD के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह (Ajit Singh) का आज कोरोना से निधन हो गया है. अजित सिंह की मंगलवार रात को तबीयत से खराब हो रही थी. जिसके बाद उनकी मौत हो गई. इस बात की जानकारी उनके पुत्र और पूर्व सांसद जयंत चौधरी ने सोशल मीडिया के जरिये दी.
सियासत की कई कठिन लड़ाइयों में जीत हासिल करने वाले चौधरी अजित सिंह कोरोना से जंग हार गए हैं. उनकी मौत से देश के किसानों में दुःख हैं और वो उनकी दिवंगत आत्मा की शांति के ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं.
विरासत में मिली थी सियासत
चौधरी अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को मेरठ में हुआ हुआ था. उनके पिता चौधरी चरण सिंह देश के दिग्गज राजनेता और भारत के 5वें प्रधानमंत्री थे. पिता की तबियत खराब होने के बाद उन्होंने राजनीति की दुनिया में कदम रखा था. अजीत सिंह ने आईआईटी से पढ़ाई पूरी की थी और बाद में विदेश जाकर रहने लगे थे. पिता की तबियत खराब होने पर जब उनके लोकदल परिवार को उनकी जरूरत हुई तो उन्हें वापस बुलाया गया.
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते है कि बाहर से आने की वजह से और उनके रहन-सहन की वजह से वो अपने पिता चौधरी चरण सिंह की तरह लोकप्रिय नहीं हो पाए. लेकिन दूसरी बात ये भी है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों ने उन्हें चौधरी चरण सिंह का वारिस मान लिया था.
खुद बनाई थी पार्टी
चौधरी अजीत सिंह राष्ट्रीय लोक दल के संस्थापक थे. जनता दल में मतभेद होने के बाद उन्होंने 'जनता दल अजीत' नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. लेकिन बाद में इसी का नाम बदलकर उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल (RLD) कर दिया था.
राजनीतिक जीवन
चौधरी चरण सिंह की तबीयत जब ज्यादा बिगड़ने लगी तब 1986 में अजीत सिंह राज्यसभा के लिए चुने गए थे. जब जनता दल का गठन हुआ तब वे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव चुने गए थे. 1989 में चौधरी अजीत सिंह बागपत से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बने. इसके बाद जब वो जनता दल से अलग हुए तो उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और 1991 के चुनाव में फिर से लोकसभा के लिए चुने गए.
1998 रहा अपवाद
केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार बनी तो अजीत सिंह एक बार फिर से मंत्री बने. इसके बाद वो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे. उन्हें मनमोहन सिंह की सरकार में भी जगह मंत्री पद मिला था. 1998 के चुनाव को अगर छोड़ दें तो 2014 से पहले तक वो हर चुनाव जीतते रहे हैं.
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अजीत की सियासत हुई कमजोर
नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय फलक पर उभार और मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उनकी सियासत कमजोर पड़ती चली गई. 2014 और 2019 में वे और उनके पुत्र जयंत चौधरी भी चुनाव हार गए थे. पिछले 2 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता भी नहीं खुला है. अब देशव्यापी किसान आंदोलन के बाद एक बार फिर से RLD का ग्राफ उठता हुआ दिख रहा है. पंचायत चुनाव में पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पार्टी को कामयाबी मिली है.
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अजीत सिंह की सियासत की शैली शालीन रही है. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शोक जाहिर किया है.