Chitragupta Birth Story: कैसे हुई कायस्थ समाज की उत्पत्ति, जानिए चित्रगुप्त महाराज की जन्म कथा
Chitragupta Puja: पुराणों में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरुष आसीन था. ये ब्रह्मा कहलाए.
पटनाः Chitragupta Puja:सनातन परंपरा में दीपावली के आखिरी दिन चित्रगुप्त पूजा भी की जाती है. चित्रगुप्त महाराज यमराज-धर्मराज जी के लेखाकार-मुंशी हैं, जो कि सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले माने जाते हैं. हर साल भाई दूज के दिन ही चित्रगुप्त पूजा मनाई जाती है. इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है. चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्माजी के अंश से हुआ है. वह उनकी काया से उत्पन्न हुए थे, इसलिए कायस्थ कहलाए. इसी तरह उनकी संतानों के जरिए जो वंश आगे बढ़ा और जो जाति बनी वह कायस्थ कहलाई. चित्रगुप्त जी की जन्म कथा भी अद्भुत है.
ये है चित्रगुप्त जी की जन्म कथा
पुराणों में वर्णित है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरुष आसीन था. ये ब्रह्मा कहलाए. इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया. इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था. धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ. इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा.
ये है चित्रगुप्त पूजा का प्रभाव
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है. ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है. कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है. इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें. और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें. यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है.