Astrology: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी जातक की कुंडली में शुभ या अशुभ की गणना वहां भावों में स्थित नवग्रहों के जरिए ही की जाती है. इन नवग्रहों में से दो छाया ग्रह राहु और केतु हैं, ये दोनों हमेशा वक्री ही चलते हैं. जबकि 7 ग्रहों में से समय के साथ ये कभी वक्री चलते हैं तो कभी मार्गी. आपको बता दें कि सूर्य और चंद्र दो ऐसे ग्रह हैं जो कभी भी वक्री नहीं होते. ऐसे में बाकी के 5 ग्रह जैसे ही वक्री होते हैं वह अस्त कहलाने लगते हैं. ऐसे में उन ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है. 


ऐसे में आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी ग्रह के मित्र और शत्रु दोनों ग्रह होते हैं और हर ग्रह किसी ना किसी राशि का स्वामी होता है. इसमें भी राहु और केतु को छोड़कर बाकि के 7 ग्रह किसी ना किसी राशि के स्वामि होते हैं. ऐसे में जब ये ग्रह अपने शत्रु ग्रहों के साथ या उनकी राशि में गोचर करते हैं तो उस राशि से संबंधित जातकों का जीवन कष्ट से भर जाता है. ऐसे में ऐसे जातकों को असफलता, धन हानि, सेहत खराब होना, करियर में दिक्कत, पारिवारिक जीवन में कलह सहित कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. 

 


 

ऐसे में अगर आप भी ग्रहों की स्थिति को ठीक से समझें तो जीवन में आनेवाली परेशानियों को कम कर सकते हैं. अब बात करते हैं ग्रहों के स्वामित्व वाली राशि की, इसके उच्च राशि की और इसकी नीच राशि की तो आपको बता दें कि सूर्य सिंह राशि का स्वामित्व करते हैं इसकी उच्च राशि मेष और नीच की राशि तुला है. वहीं चंद्रमा कर्क राशि का स्वामि है और वह वृष राशि में उच्च का होता है और वृश्चिक राशि में निम्न का होता है. 

 

वहीं मंगल मेष राशि, वृश्चिक राशि का स्वामी और मकर में उच्च का एवं कर्क राशि में नीच का होता है. वहीं बुध मिथुन, कन्या राशि का स्वामित्व करता है. साथ ही वह कन्या में उच्च का और मीन राशि में नीच का होता है. बृहस्पति धनु , मीन राशि का स्वामित्व करता है और यह कर्क राशि में उच्च और मकर में नीच का होता है. इसके साथ ही शुक्र वृषभ और तुला राशि का स्वामी है और मीन में उच्च और कन्या में निम्न का होता है. शनि के पास दो राशि का स्वामित्व है ये दो राशियां हैं मकर और कुंभ जबकि यह तुला राशि में उच्च का है. वहीं मेष में नीच का होता है.राहु मिथुन राशि में उच्च और धनु राशि में नीच का होता है. जबकि इसके उलट केतु धनु राशि में उच्च और मिथुन राशिम में निम्न का होता है. ऐसे में कोई ग्रह जब अपनी स्वराशि में या उच्च की राशि में होता है तो यह जातक के जीवन को खुशियों से भर देता है. वहीं अगर वह कुंडली में नीच का हो तो इसके लिए उपाय करना चाहिए क्योंकि ऐसे में नीच राशि में कोई भी ग्रह अशुभ फल देता है.