इतिहास में पहली बार भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के पार, जानिए इसका कितना होगा असर
इतिहास में पहली बार भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के पार पंहुचा है. बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.02 के रिकॉर्ड भाव को छू लिया इससे पहले कोरोना काल में डॉलर के मुकाबले रुपया 77 के पार पहुंच गया था.
पटना : दुनिया में इस समय क्या चल रहा है ये किसी के लिए भी समझना मुश्किल हो रहा है. कोरोना काल में दुनिया भर के बाज़ारों का जो हाल हुआ था उसने दुनिया भर के निवेशकों में कोहराम मचा दिया था. विश्व की अर्थव्यवस्थाएं ठप्प हो गई थी. जिसका असर मुद्रा बाजार पर भी देखने को मिला था. जिसके बाद रुपये में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली थी. भारतीय रुपये कोरोना काल में 77 रुपये पहुंच गया था लेकिन फिर धीमे-धीमे दुनिया भर की सरकारें अर्थव्यवस्था को पटरी पर करने की कोशिश में लग गई थी जिसके बाद मुद्रा बाजार में स्थिरता देखने को मिली थी.
पहली बार रुपया 83 डॉलर के पार
इतिहास में पहली बार भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के पार पंहुचा है. बुधवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.02 के रिकॉर्ड भाव को छू लिया इससे पहले कोरोना काल में डॉलर के मुकाबले रुपया 77 के पार पहुंच गया था. 2010 में रुपये का भाव मात्र 50 रुपये प्रति डॉलर था इसका मतलब पिछले 12 सालों में रुपये में लगभग 65% की गिरावट दर्ज हुई है. अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रुपये की गिरावट कहां जाकर थमेगी. ग्लोबल बाजारों में जब से वैश्विक मंदी का खतरा मंडराना शुरू हुआ तब से दुनिया भर के इक्विटी बाज़ारों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है जिसका असर मुद्रा बाज़ार पर भी छाया हुआ है.
रुपये की गिरावट से किसको नुकसान
भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कच्चे तेल का बहुत अधिक महत्व है. रुपये में लगातार गिरावट से भारतीय तेल कंपनियों को कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा, विदेशों से आयात होने वाला खाने का तेल महंगा होगा. मोबाइल और लैपटॉप और उसमें उपयोग होने वाली एसेसरीज जो भारत आयात करता है वो महंगा हो जायेगा. विदेशों में पढ़ाई करनेवाले और वहां रहने वाले छात्रों पर भी रुपये की गिरावट का असर देखने को मिलेगा.
रुपये की गिरावट इनके लिए फायदेमंद
रुपये की गिरावट का फायदा आईटी इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा होता है. आईटी कंपनियों की सबसे ज्यादा कमाई विदेशों में आईटी सर्विसेज देने से प्राप्त होती है. इसमें आईटी कंपनी टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, टेक महिंद्रा, एचसीएल आदि जिनका व्यापर विदेशों में ज्यादा होता है. इसके अलावा निर्यात करने वाली कंपनियों को भी गिरते रुपये से फायदा होता है क्योंकि भारत जो भी निर्यात करता है उसका भुगतान डॉलर में होता है. विदेशी सैलानी अगर भारत घूमने का प्लान बना रहे हैं तो गिरता रुपया उनके लिए भी फायदे का सौदा है क्योंकि उन्हें डॉलर की तुलना में रुपये का ज्यादा भुगतान मिलेगा.
रुपये की गिरावट कब थमेगी ये किसी को नहीं पता. रुपये का लगातार गिरना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं है. अब देखना ये होगा की रुपये की गिरावट को रोकने के लिए RBI कब कदम उठाएगी या गिरावट का यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा.
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