Gall Bladder Cancer: बिहार में गंगा के मैदानी इलाकों में आर्सेनिक युक्त पानी से कैंसर के मामलों में वृद्धि हो रही है. पटना समेत राज्य के 20 जिलों में गॉल ब्लैडर (पित्ताशय की थैली) का कैंसर एक गंभीर समस्या बन गया है. खासकर महिलाओं में इस बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. महावीर कैंसर संस्थान के वैज्ञानिकों ने गॉल ब्लैडर कैंसर और आर्सेनिक पानी के संबंध पर शोध किया है और अब वे जापान के साथ मिलकर इस बीमारी के समाधान के लिए रिसर्च कर रहे हैं. इस शोध का मकसद बिहार को इस गंभीर बीमारी से छुटकारा दिलाना है.


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गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार महावीर कैंसर संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार घोष और डॉ. अरुण कुमार इस संबंध में रिसर्च के लिए जापान के टोक्यो गए हैं. 2023 में महावीर कैंसर संस्थान के शोध में यह पता चला था कि गंगा के मैदानी इलाकों के पानी में आर्सेनिक की उपस्थिति से गॉल ब्लैडर कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं. साथ ही शोध में 152 मरीजों के पित्ताशय की थैली के ऊतकों का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि उनके पित्ताशय में भारी मात्रा में आर्सेनिक जमा हुआ था. मरीजों के पित्ताशय के साथ-साथ उनके रक्त और बालों में भी आर्सेनिक की अधिक मात्रा पाई गई. पिछले 10 वर्षों में गंगा के मैदानी इलाकों में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है. शोध में यह भी सामने आया है कि महिलाओं में इस बीमारी का खतरा पुरुषों से 10% अधिक है.


दोनों देशों के वैज्ञानिक मिलकर कैंसर के कारणों और इलाज पर करेंगे काम
इसके अलावा महावीर कैंसर संस्थान और जापान की संस्था ने इस समस्या को हल करने के लिए मिलकर काम शुरू किया है. इस शोध के निष्कर्षों को जापान के फुकुओका में आयोजित जापान कैंसर एसोसिएशन की 83वीं वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा. इस रिसर्च के लिए जापान सरकार से एक करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ है, जिससे दोनों देशों के वैज्ञानिक मिलकर आर्सेनिक से होने वाले गॉल ब्लैडर कैंसर के कारणों और इलाज पर काम करेंगे.


कैंसर की रोकथाम के लिए किए जा रहे उपाय
हाल ही में किए गए अध्ययनों में यह भी पता चला है कि गंगा के मैदानी इलाकों में भूजल और भोजन के माध्यम से आर्सेनिक शरीर में प्रवेश करता है, जिससे गॉल ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ता है. यह शोध इंटरनेशनल जर्नल 'नेचर-साइंटिफिक रिपोर्ट्स' में प्रकाशित हुआ है. पित्ताशय के कैंसर के खतरे में आर्सेनिक के अलावा अन्य कारक जैसे कीटनाशक, जीवनशैली और भारी धातुएं भी शामिल हैं. साथ ही महावीर कैंसर संस्थान ने इस संयुक्त शोध के लिए एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला की स्थापना भी की है. इस अध्ययन का उद्देश्य पित्ताशय के कैंसर के वास्तविक कारणों को जानना और इसे रोकने के लिए समाधान खोजना है. इस शोध परियोजना की कुल अवधि 3 साल की है और इसके जरिए बिहार के गंगा के इलाकों में कैंसर के बढ़ते मामलों पर नियंत्रण पाया जा सकेगा.


बता दें कि 2023 में किए गए शोध के अनुसार आर्सेनिक पित्ताशय की थैली के कैंसर का एक प्रमुख कारण है. आर्सेनिक शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं से जुड़ता है और पित्ताशय में जाकर पथरी बनाता है, जिससे लंबे समय तक अनुपचारित रहने पर कैंसर हो सकता है.


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