पटनाः Ganesha Chaturthi 2022: भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी व्यक्ति चांद के दर्शन करता है उस पर झूठा आरोप लगता है. इसलिए भादों महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चांद के दर्शन नहीं करना चाहिए. 


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ऐसी है कथा 
एक बार गणेश जी को चंद्रलोक से भोज का आमंत्रण आया. गणेश जी को मोदक प्रिय है इसलिए उनका ध्यान मोदक पर ही था. गणेशजी ने वहां जी भर कर मोदक खाए और लौटते वक्त बहुत से मोदक साथ भी ले आए. मोदक बहुत ज्यादा थे जो उनसे नहीं संभल पाए. मोदकों के गिरते ही चंद्रदेव गणपति पर हंस पड़े. चंद्रदेव को हंसता देख गणेशजी गुस्से में आ गए. क्रोध में आकर उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि आज के दिन जो भी उन्हें देखेगा उस पर चोरी का कलंक लग जाएगा. तब से इसी मान्यता का चलन है कि जो भी चतुर्थी को चांद देखेगा उसे कष्टों का सामना करना पड़ेगा. 


श्रीकृष्ण को भी सहना पड़ा कलंक
एक बार श्रीकृष्ण ने भाद्रपद चतुर्थी को चंद्र दर्शन किया था. इसके कारण उन्हें मिथ्या आरोप सहना पड़ा था. उनके ऊपर चोरी का कलंक लगा था. स्यामंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते थे. इंद्र ने यह मणि सूर्यदेव को दी थी. श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित नियम से सूर्य पूजा करते थे. उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी. त्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी. वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित शिकार के लिए चला गया. जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और मणि अपने पास रखी ली.


27 दिन तक चला युद्ध
सिंह के पास मणि देखकर जामवंत ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपनी पुत्री को दे दी. इधर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है. क्योंकि एक दिन कृष्ण ने इस मणि की प्रशंसा की थी. खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को गलत साबित करने के लिए श्रीकृष्ण जंगल में गए, जहां प्रसेनजित गया था. इस तरह वह जांबवंत की गुफा तक पहुंच गए. भगवान श्रीकृष्ण को इस मणि के लिए युद्ध करना पड़ा था. जामवंत के साथ उनका युद्ध 27 दिन तक चला. जब शक्तिशाली जामवंत उन्हें हरा नहीं सके तो उन्हें कुछ शक हुआ कि यह व्यक्ति कोई असाधारण है. उन्होंने अनायास ही अपनी प्रभु श्रीराम का स्मरण किया. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें रामरूप में दर्शन दिए. जामवंत ने सारी बात जानकर वह मणि उन्हें वापस की और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी श्रीकृष्ण से किया.


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