Ganesha Chaturthi Puja: पौराणिक कथाओं से पता चलता है कि गणेश जी ने श्रीकृष्ण से पहले गीता का ज्ञान दिया था. यह गीता ज्ञान उन्होंने अपने एक अवतार स्वरूप के पिता रूप में राजा वरेण्य को दिया था. राजा वरेण्य भगवान गजानन के पिता थे और मोह में पड़ गए थे. श्रीकृष्ण की ही तरह गणेश जी ने ज्ञान के बाद उनका मोह दूर करने के लिए अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे और महागणपति स्वरूप में प्रकट हुए थे. गणेश जी के पिता शिव जी ही हैं, लेकिन अवतार के लिए उन्होंने एक राजा के घर जन्म लिया था. 


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ये है गणेश गीता में खास
गणेशगीता' के 11 अध्याय हैं, जिनमें 414 श्लोकों में ज्ञान की बातें कही गई हैं. गणेशगीता के पहले अध्याय 'सांख्यसारार्थ' में गणपति ने राजा वरेण्य को योग का ज्ञान दिया. इसके दूसरे अध्याय में गणेश जी ने राजा को कर्म की प्रधानता बताई और इसका मर्म समझाया. तीसरे अध्याय में गणेश जी ने राजा वरेण्य को अपने अवतार धारण करने का रहस्य बताया. गणेशगीता में योगाभ्यास तथा प्राणायाम से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण बातें बतलाई गई हैं. छठे अध्याय 'बुद्धियोग' में भगवान गणपति राजा वरेण्य को समझाते हैं कि अपने सत्कर्म के प्रभाव से ही मनुष्य में ईश्वर को जानने की इच्छा जागृत होती है. गणेशगीता में भक्तियोग का वर्णन भी है. इसमें भगवान गणेश ने राजा वरेण्य को अपने विराट रूप का दर्शन कराया.


राजा वरेण्य को मिला मोक्ष
नौवें अध्याय में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान तथा सत्व, रज, तम तीनों गुणों का परिचय दिया गया है. दसवें अध्याय में दैवी, आसुरी और राक्षसी तीनों प्रकार की प्रकृतियों के लक्षण बतलाए गए हैं. इस अध्याय में गजानन कहते हैं कि काम, क्रोध, लोभ और दंभ ये चार नरकों के महाद्वार हैं, अत: इन्हें त्याग देना चाहिए तथा दैवी प्रकृति को अपनाकर मोक्ष पाने का यत्न करना चाहिए. अंतिम ग्यारहवें अध्याय में कायिक, वाचिक तथा मानसिक भेद से  तप के तीन प्रकार बताए गए हैं. गणेशगीता का ज्ञान पाने के बाद राजा वरेण्य राजगद्दी त्यागकर वन में चले गए. वहां उन्होंने गणेशगीता में कथित योग का आश्रय लेकर मोक्ष पा लिया.


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