पटनाः Gopashtami 2022: भारतीय समाज कृषि प्रधान रहा है और यहां की संस्कृति देव प्रधान है. गाय कृषि के लिए उपहार और मानव जीवन के लिए वरदान मानी गई है. गाय के दूध से मनुष्य को पोषण मिलता है इसलिए उसकी तुलना माता से की गई है. वहीं गाय में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना जाता है. देवी पार्वती के गौरी स्वरूप का निवास गाय के गोबर में ही माना जाता है, इसलिए गोबर से गौरी-गणेश बनाकर पूजा की जाती है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

गाय को माना जाता है देवतुल्य
सनातन संस्कृति में आज गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. आज के दिन गाय और भगवान की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. सनातन परंपरा में गाय पूजनीय मानी जाती है. इस दिन गाय की पूजा और उसकी सेवा आदि करने से सभी तरह के कष्टों का नाश होता है साथ ही घर में सुख-समृद्धि भी आती है. गोपाष्टमी के दिन गाय और गोवंशों की सुरक्षा, संवर्धन और उनकी सेवा का संकल्प लेकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.


श्रीकृष्ण ने शुरू की थी परंपरा
गोपाष्टमी पर्व की परंपरा श्रीकृष्ण ने शुरू की थी. हालांकि गाय युगों-युगों से पूजित रही है, लेकिन महाभारत काल में जब एक बार इंद्र का घमंड बढ़ता जा रहा था. तब श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवा दी थी. दरअसल, ब्रज वासी ग्वाल-बाल और किसान इंद्र की ही पूजा करते थे क्योंकि वह वर्षा के देवता थे और उनके नाराज होने पर अकाल पड़ सकता था. इससे बचने के लिए इंद्र आदि देवताओं की पूजा का कठिन विधान चला आ रहा था. श्रीकृष्ण ने लोगों को ऐसे खर्चीले और कठिन आयोजनों से दूर रहने को कहा, साथ ही ये भी समझाया कि कौन पूजनीय है. उन्होंने प्रकृति पूजा का संदेश दिया. 


इंद्र हो गए थे क्रोधित
कृष्ण ने यमुना नदी, जंगल, पर्वत, पेड़ और गाय-गोवंशों की पूजा का विधान बताया. इसी दौरान उन्होंने अलग-अलग तिथियों पर इनकी पूजा की. गोपाष्टमी के दिन उन्होंने सबसे पहले गाय की पूजा की. वहीं आगे चलकर जब उन्होंने अंतिम में गोवर्धन पूजा कराई तब इंद्र क्रोधित हो गए थे. गोपाष्टमी का ये विधान तब से चला आ रहा है.