पटनाः Guruwar Lord Vishnu Puja: गुरुवार का दिन सनातन परंपरा में भगवान विष्णु का दिन है. भगवान विष्णु त्रिगुणातीत कहा जाता है और संसार में उनका सबसे उच्च स्थान है. वह जगत के पालक हैं. गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा से बहुत लाभ मिलते हैं. घर में कलह हो रही है, धन की कमी हो, कोई काम बार-बार अटकता है तो भगवान विष्णु की पूजा करने से भी लाभ मिलता है. जिस घर में श्रीहरि की पूजा होती है, लक्ष्मी भी वहां, पूर्ण मनोयोग से निवास करती हैं. सनातन परंपरा में सभी गृहस्थों को महादेव शिव और विष्णु पूजा करने का विधान बताया गया है. अगर आप को पूजा करने का बहुत अधिक समय नहीं मिलता है तो श्रीहरि विष्णु की दो  सूक्तियों में से भी किसी का पाठ किया जा सकता है. जानिए इन सूक्तियों का अर्थ सहित महत्व. 


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1. भगवान विष्णु की संपूर्ण आभा का वर्णन करने वाला यह श्लोक उनकी स्तुति के लिए सबसे आसान है. बस ध्यान से एक बार शब्द सही उच्चारण कर यह स्तुति करें और श्रीविष्णु को प्रसाद चढ़ाएं. इसके बाद सूर्य नारायण को जल चढ़ाएं. आप चाहें तो इस श्लोक का हिंदी अर्थ भी स्तुति के तौर पर प्रयोग कर सकते हैं.


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-
वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः।


अर्थ- ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुत जिनका दिव्य स्तोत्रों से स्तवन करते हैं, सामगान करनेवाले लोग अङ्ग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों से जिनका गान करते हैं, ध्यानमग्न एवं तल्लीनचित्तसे योगी जिनका साक्षात्कार करते हैं और जिनका पार सुर और असुर कोई भी नहीं पाते, उन भगवान को नमस्कार है. 


2. भगवान विष्णु के रूप, गुण, स्वभाव, शक्ति और उनकी अद्भुत शक्ति, शांति व सौम्यता का वर्णन करने वाला यह श्लोक विशेष चमत्कारी है. इसे पढ़ना और गाना भी आसान है. पूजा में इसका प्रयोग किया जा सकता है. इससे आपको विशेष लाभ मिलेंगे.
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् . 


जिनकी आकृति अतिशय शांत है, वह जो धीर क्षीर गंभीर हैं, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं), जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, शुभाङ्गम् – अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अति मनभावन एवं सुंदर है, ऐसे लक्ष्मी के कान्त ( लक्ष्मीपति ) कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं), जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, (योगी जिनको प्राप्त करने के लिया हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं) भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूं. (ऐसे परमब्रम्ह श्री विष्णु को मेरा नमन है) जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं. जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर हैं.


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