पटनाः Hartalika Teej:भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है. इस दिन मुख्य तौर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान बताया गया है. हिन्दू धर्म के सभी व्रतों में हरतालिका व्रत को सबसे कठिन इसलिए माना गया है क्योंकि यह निर्जला और निराहार किया जाता है. अगले दिन पूजा के बाद ही महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं. इस व्रत की क्या है कथा, जानिए.


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ये है पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की याद दिलाता है. दऱअसल, सती माता के दाह से भगवान शिव विवाह के प्रति उदासीन हो गए थे. ऐसे में उन्होंने विवाह का निर्णय छोड़ दिया था. इसलिए वह दोबारा पार्वती के रूप में जन्मीं आदिशक्ति को भी स्वीकार नहीं कर रहे थे. माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की. 


मां पार्वती ने किया था कठोर तप
माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए. एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी. एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं. इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई. 


ये है तीज व्रत का महत्व
इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया. माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया. इसी दिन के बाद से सावन में शिव आराधना करना उत्तम माना जाने लगा और, युवतियां शिव जी के व्रत रखने लगीं. मान्यता है की सुहागन स्त्रियां माता पार्वती को आराध्या मानकर उनकी तरह तीज व्रत रखती हैं.


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