IND vs Sri Lanka: श्रीलंका ने हमें दिया विजया दशमी और दिवाली, हमने यूं प्रकाश पर्व से पहले निकाल दिया उसका दिवाला!
बात त्रेतायुग की है. जम्बूद्वीप में ही तो सारा कुछ बसा था. हम भी थे यानी भारत भी था और श्रीलंका भी. तभी तो हम आज भी जम्बूद्वीपे, भरतवर्षे, भारतखंडे के साथ अपने हर पूजा अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं.
IND vs Sri Lanka: बात त्रेतायुग की है. जम्बूद्वीप में ही तो सारा कुछ बसा था. हम भी थे यानी भारत भी था और श्रीलंका भी. तभी तो हम आज भी जम्बूद्वीपे, भरतवर्षे, भारतखंडे के साथ अपने हर पूजा अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं. फिर एक ऐसा समय भी गुजरा जब एक महान विद्वान की राक्षसी आदतों की वजह से इस भारत भूमि पर भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पड़ा. मर्यादा की प्रतिमूर्ति और वीरता की ऐसी मिसाल जिसके सामने पूरा जग बस नतमस्तक सा हो गया. यह वही मायावी रावण था जो तब लंकापति था और सोने की लंका में निवास करता था. राम को पता था कि शिव के ऐसे अनन्य भक्त का वध कर देना उनके हाथों से भी होने वाला ब्रह्म हत्या का ऐसा पाप होगा कि उससे बच पाना उनके लिए भी शायद मुमकिन नहीं है. ऐसे में वह तब मौके की तलाश में थे कि वह राक्षस अपनी गलती के एक कदम तो आगे बढ़ाए.
पाप कहां पुण्य के रास्ते को स्वीकार करता है. मायावी रावण सीता को हर ले गया वह भी एक साधु के वेष में आकर, मतलब अपराध क्षमा के लायक भी नहीं था. एक तो नीचता की हद और ऊपर से ऐसे स्वरूप में जो पूजनीय है. ऐसे में राम पहुंचे रावण के वध को और उन्होंने सबसे पहले रावण के वध से पहले अनुमति मांगी भी तो शिव की जिसका वह राक्षस अनन्य भक्त था. राम ने उसकी लंका में जाकर उसे ललकारा और फिर उसका वध कर दिया. लेकिन, मर्यादा ऐसी की राम ने उस लंका पर अपना अधिकार नहीं जमाया पर उसके भाई और धर्म के मार्ग पर चलने वाले विभीषण को लंकापति बना दिया. तब विजया दशमी का पर्व यहां से चल निकला और फिर वहां से जब अपनी सीता के साथ राम अयोध्या को पहुंचे तो मर्यादा के इस मूरत राम के स्वागत के लिए पूरी अयोध्या दीपों से प्रकाशमान हो रही थी. यानी दिवाली का दिया पूरे अयोध्या में जल रहा था.
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ऐसे में लंका से हमें दो-दो त्योहार मिले. एक तो बुराई पर अच्छाई की विजय का दिन विजया दशमी और दूसरा अंधकार पर प्रकाश का पर्व दीपावली. ऐसे पड़ोसी के लिए हमने क्या चुना. बात मैदान पर खेल की हो रही है. विश्व कप का टुर्नामेंट चल रहा है और मेजबानी भारत कर रहा है. मतलब घर अपना और मेहमान वही लंका. लेकिन, खेल को तो खेल भावना से खेला जाता है. आज उसी आश्विन के बाद कार्तिक के महीने की पंचमी तिथि है और भारत श्रीलंका के साथ विश्व कप में मुकाबले के लिए मुंबई के वानखड़े स्टेडियम में मैदान पर उतरा. इससे पहले एशिया कप के फाइनल में भारत ने 10 विकेट से श्रीलंका को मात दिया था और तब भारत ने श्रीलंका को 50 के स्कोर पर पूरी टीम को पवेलियन का रास्ता दिखा दिया था. आज भी नजारा कुछ ऐसा ही था. यह वही मैदान था जहां 2011 के विश्व कप का फाइनल मुकाबला खेला जा रहा था और तब हमारे सामने श्रीलंका की टीम थी जिससे हमने जीत छीन ली थी. आज जब भारत के खिलाड़ी मैदान पर बल्ले से अपना दमखम दिखा रहे थे तो किसी ने सोचा नहीं होगा कि विश्व कप के मुकाबले में श्रीलंका की टीम रनों के पहाड़ को देखकर तास के पत्तों की तरह ढ़ह जाएगी.
55 के कुल टीम स्कोर पर पूरी की पूरी श्रीलंकाई टीम 19.4 ओवर में ही धराशायी हो गई. मोहम्मद शामी और सिराज के शिकार बनते-बनते कब लंका की नैया डूब गई उस टीम के चाहनेवालों को भी पता नहीं चला. टीम के 5 बल्लेबाज तो बिना खाता खोले ही लौट गए. शमी ने 5 तो सिराज ने 3 शिकार कर लिया. भारत में दिवाली से पहले वाला भारतीय टीम का धमाका सबको महसूस हो गया. श्रीलंकाई टीम के ऐसे पांव उखड़े की दिवाली से पहले उनका दिवाला निकल गया. हाय रे खेल कहां त्रेता से कलयुग तक एक तरह से मर्यादा की धरती पर मर्यादा के रंग में रंगे खेल में ये श्रीलंकाई खिलाड़ी धराशायी हो गए.
नोट:- इस पूरी स्टोरी को केवल कटूपहास के तौर पर देखें क्योंकि यह किसी तरह से किसी देश या टीम उनके खिलाड़ी या जनभावना के खिलाफ नहीं लिखा गया है. इस स्टोरी का उद्देश्य केवल और केवल कटाक्ष है और इससे ज्यादा कुछ नहीं. श्रीलंका जैसी मजबूत दावेदार टीम के इस तरह के प्रदर्शन पर इस लेख का उद्देश्य भी केवल और केवल मनोरंजन है...