इतिहास में पहली बार भारतीय रुपया 82 डॉलर के पार, भारत पर इसका कितना असर
दुनिया में इस समय क्या चल रहा है ये किसी के लिए भी समझना मुश्किल हो रहा है. कोरोना काल में दुनिया भर के बाजारों का जो हाल हुआ था उसने दुनिया भर के निवेशकों में कोहराम मचा दिया था. विश्व की अर्थव्यवस्था ठप हो गई थी. जिसका असर मुद्रा बाजार पर भी देखने को मिला था.
पटना : दुनिया में इस समय क्या चल रहा है ये किसी के लिए भी समझना मुश्किल हो रहा है. कोरोना काल में दुनिया भर के बाजारों का जो हाल हुआ था उसने दुनिया भर के निवेशकों में कोहराम मचा दिया था. विश्व की अर्थव्यवस्था ठप हो गई थी. जिसका असर मुद्रा बाजार पर भी देखने को मिला था. जिसके बाद रुपये में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली थी. भारतीय रुपये कोरोना काल में 77 रुपये पहुंच गया था, लेकिन फिर धीमे-धीमे दुनिया भर की सरकार इकोनॉमी को पटरी पर लाने की कोशिश में लग गई थी. जिसके बाद मुद्रा बाजार में स्थिरता देखने को मिली थी.
पहली बार रुपया 82 डॉलर के पार
बता दें कि इतिहास में पहली बार भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 82 डॉलर के पार पंहुचा है. बुधवार को रुपये ने 82.21 डॉलर का भाव छू लिया, इससे पहले कोरोना काल में रुपये 77 डॉलर के पार पहुंचा था.
2010 में रुपये का भाव मात्र 50 डॉलर प्रति रुपये था इसका मतलब पिछले 12 सालों में रुपये में लगभग 65% की गिरावट हुई है अभी यह कह पाना मुश्किल है कि रुपये गिरवाट कहा जाकर थमेगी. ग्लोबल बाजारों में जब से वैश्विक मंदी का खतरा मडराना शुरू हुआ तब से दुनिया भर के इक्विटी बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. जिसका असर मुद्रा बाजार पर भी छाया हुआ है.
रुपये की गिरावट से किसको नुकसान
भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कच्चे तेल का बहुत अधिक महत्व है रुपये में लगातार गिरावट से भारतीय तेल कंपनियों को कच्चा तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर का भुगतान करना पड़ेगा. विदेशों से आयात होने वाला खाने का तेल महंगा होगा,मोबाइल और लैपटॉप और उसमें उपयोग होने वाली एसेसरीज जो भारत आयात करता है वो महंगा हो जायेगा,विदेशों में पढ़ाई और वहां रहने वाले छात्रों पर भी रुपये की गिरावट का असर देखने को मिलेगा।
रुपये की गिरावट इनके लिए फायदेमंद
बता दें कि रुपये की गिरावट का फायदा आईटी इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा होता है. आईटी कंपनियां की सबसे ज्यादा कमाई विदेशों में आईटी सर्विसेज देने से प्राप्त होती है. इसमें आईटी कंपनी टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, टेक महिंद्रा, एचसीएल आदि जिनका व्यापार विदेशों में ज्यादा होता है. इसके अलावा निर्यात करने वाली कंपनियों को भी गिरते रुपये से फायदा होता है. क्योंकि भारत जो भी निर्यात करता है उसका भुगतान डॉलर में होता है, विदेशी सैलानी अगर भारत घूमने का प्लान बना रहे है तो गिरता रुपया उनके लिए भी फायदे का सौदा है. क्यों कि उन्हें डॉलर की तुलना में रुपये का ज्यादा भुगतान मिलेगा.
रुपये की गिरावट कब थमेगी ये किसी को नहीं पता, रुपये का लगातार गिरना अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं है. अब देखना ये होगा कि रुपये की गिरावट को रोकने के लिए RBI कब कदम उठाएगी या गिरावट का सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा.