आजाद भारत का पहला नेता जिसे सुनाई गई थी फांसी की सजा, DM की सरेआम की थी हत्या!
Bihar Samachar: कहने को तो आनंद मोहन सिंह पर कई मामलों में आरोप लगे. लेकिन 1994 में एक मामला ऐसा आया, जिसने ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया.
Patna: बिहार, एक ऐसा राज्य जहां से अहिंसा की अवधारणा उत्पन्न हुई. मानव जाति की भलाई के लिए इतिहास का सबसे आकर्षक विचार यहीं की देन है. यहीं से गौतम बुद्ध और भगवान महावीर ने 2600 साल पहले अहिंसा की अवधारणा विकसित की. लेकिन दुर्भाग्य से यहां के लोग कभी भी अहिंसा के महत्त्व को नहीं समझ सके और देखते ही देखते बिहार एक ऐसा राज्य बन गया जहां विकास कम और बाहुबली नेताओं का उदय ज्यादा देखा गया.
बरसों से न जाने कितने ही बाहुबली यहां की मिट्टी को खून से लाल करते आए हैं. अनंत सिंह, सूरजभान सिंह, सुनील पांडेय और रामा सिंह जैसे बाहुबली नेताओं के नाम से आज भी बिहार के लोग सिहर जाते हैं.
इन्हीं बाहुबलियों के बीच एक नाम और गिना जाता है. वो नाम है दबंग और पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह का. आनंद मोहन ने 17 साल की उम्र में ही सियासत की शुरुआत कर दी थी. ये आजाद भारत के पहले ऐसे राजनेता है जिसे फांसी की सजा सुनाई गई. हालांकि, इस सजा को बाद में ऊंची अदालत ने उम्र कैद में बदल दिया जिसके तहत आनंद मोहन सिंह आज भी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.
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कहने को तो आनंद मोहन सिंह पर कई मामलों में आरोप लगे. लेकिन 1994 में एक मामला ऐसा आया, जिसने ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया. दरअसल, जिस समय आनंद मोहन ने अपनी चुनावी राजनीति शुरू की थी, उसी समय बिहार के मुजफ्फरपुर में एक नेता हुआ करते थे जिनका नाम था छोटन शुक्ला. आनंद मोहन और छोटन शुक्ला की दोस्ती काफी गहरी थी.
5 दिसंबर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई. जिसके बाद आनंद शुक्ला ने छोटन शुक्ला की लाश के साथ राजनीतिक रैली निकाली. रैली में लाखों की भीड़ मौजूद थी. इसी बीच हाजीपुर के रास्ते नेशनल हाईवे नंबर 28 से एक लाल बत्ती की गाड़ी गुजर रही थी. गाड़ी में गोपालगंज के दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया मुजफ्फरपुर की आधिकारिक बैठक में हिस्सा लेकर गोपालगंज वापस लौट रहे थे.
लालबत्ती की गाड़ी देख भीड़ भड़क उठी और गाड़ी पर पथराव करना शुरू कर दिया, जी कृष्णैया को गाड़ी से बाहर निकाला गया और खाबरा गांव के पास भीड़ ने पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी. भीड़ को आनंद मोहन द्वारा उकसाया गया था. आरोप था कि उन्हीं के कहने पर भीड़ ने जी कृष्णैया की हत्या की.
मामले के तहत आनंद, उनकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया. साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई. आजाद भारत में यह पहला मामला था, जिसमें एक राजनेता को मौत की सजा दी गई थी. हालांकि, 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. साल 2012 में आनंद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सजा कम करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया और वे आज भी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.
जेल में सजा काटने के दौरान आनंद ने दो पुस्तकें 'कैद में आजाद कलम' और 'स्वाधीन अभिव्यक्ति' लिखी, जो प्रकाशित हो चुकी हैं. 'कैद में आजाद कलम' को संसद के ग्रंथालय में भी जगह दी गई है.
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आनंद मोहन और लवली आनंद की शादी 1991 में हुई थी. जेल में रहते हुए भी साल 2010 में वे अपनी पत्नी लवली को कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव और 2014 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़वाने में कामयाब रहे. भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी करा दिए जा चुके अपराधियों के चुनाव लड़ने में रोक लगा दी हो लेकिन बिहार में आनंद मोहन का दबदबा आज भी कम नहीं हुआ है. यही वजह है कि शनिवार को कई घंटों तक ट्विटर पर रिलीज आनंद मोहन नंबर एक पर ट्रेंड करता रहा.
दरअसल, कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर उनकी पत्नी और पूर्व सांसद लवली आनंद और बेटे विधायक चेतन आनंद ने उनकी रिहाई की मांग उठाई है. आनंद मोहन की रिहाई के लिए उनके परिवारवालों के साथ-साथ समर्थकों ने सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ रखी है.
ट्विटर पर चलाई जा रही इस मांग के बाद आनंद मोहन के बेटे और राजद विधायक चेतन आनंद ने लोगों को धन्यवाद किया है साथ ही यह उम्मीद जाहिर की है की उनके पिता आनंद मोहन बहुत जल्द जेल से बाहर आ जाएंगे. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने भी लोगों को धन्यवाद दिया है और उम्मीद जाहिर की है की बहुत जल्द आनंद मोहन जेल से बाहर होंगे.
इधर, कोरोना के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने भी 7 मई को फैसला लिया कि कैदियों की सजा पर विचार करते हुए उन्हें टेम्पररी जमानत या पैरोल पर रिहा कर जेल की भीड़ को कम किया जाए. ऐसे में देखना होगा कि आनंद मोहन को जेल से रिहाई मिलती है या नहीं.