Bhagalpur Samachar: एक ऐसी घटना जिससे शायद ही कोई अनजान होगा, जिसे याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती है.
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Bhagalpur: भागलपुर, गंगा के तट पर बसे इस शहर को अक्सर बदनामी झेलनी पड़ी है. यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि पिछले कई दशकों से चलता आ रहा है. जिस घटना का जिक्र आगे हम करने वाले हैं वह इस बात का जीता जागता सबूत है.
एक ऐसी घटना जिससे शायद ही कोई अनजान होगा, जिसे याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती है. भागलपुर के ऐसे लोग जो इस घटना के साक्षी हैं या जिसने घटना को करीब से जाना है आज भी वह इसकी चर्चा मात्र से ही कुछ पल के लिए सिहर जाते हैं.
बात 1979 की है. कहा जाता है कि उस समय भागलपुर में क्राइम अपने चरम पर था. दिनदहाड़े लोगों के घरों से बेटियां उठा ली जाती थी और कोई चूं तक नहीं कर पाता था. सरेआम अपहरण, हत्या, लूट, जैसी घटनाएं बाहुबलियों के लिए दिनचर्या बन गई थी. क्षेत्र में दहशत भी इतनी थी कि कोई भी अपराधियों के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत तक नहीं करता था.
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जानकारी के मुताबिक, उस समय 1 साल में लगभग 89 हत्याएं हुई. भागलपुर जैसे छोटे इलाके में 89 हत्याओं की घटना का आंकड़ा बहुत बड़ा था. लेकिन कहते हैं ना हैं कि अति किसी भी चीज की बहुत बुरी होती है. ऐसा ही कुछ भागलपुर में होने वाला था, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी.
अपराधी अपनी अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे ही रहे थे कि एक दिन भागलपुर थाने में कुछ हाई प्रोफाइल लोग अपहरण की एफआईआर दर्ज कराने आए. अब चूंकि मामला हाईप्रोफाइल था इसलिए देरी ना करते हुए कार्रवाही की गई और अपराधियों को पकड़ा गया. लेकिन हर बार की तरह इस बार भी पुलिस कुछ ना कर सकी और अपराधियों को छोड़ दिया गया.
इस दौरान भागलपुर पुलिस पर पटना से प्रेशर बना तो भागलपुर की ही एक धर्मशाला में पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ एक गुप्त मीटिंग रखी कि ऐसा क्या किया जाए जिससे यहां क्राइम का दर कम हो पाए. अपराधी पकड़े जाते हैं लेकिन उसके कुछ ही दिनों बाद गवाह ना मिलने के कारण या फिर जमानत पर छोड़ दिए जाते हैं. मीटिंग में सुझाव रखा गया कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे अपराधी अपराध करने से खुद डरने लगे. उनके बीच ऐसी दहशत पैदा कर दी जाए कि फिर कभी वे कुछ गलत करने के बारे में सोच तक ना सके.
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मीटिंग खत्म होती है. यह वारदात अक्टूबर 1979 की है. भागलपुर डिस्ट्रिक्ट के ही नवगछिया थाने में क्राइम को खत्म करने के लिए सबसे पहली कार्रवाही की जाती है. इसके चलते नवगछिया थाने की पुलिस वहां के कुछ नामी अपराधियों को दिन के वक्त पकड़ कर लाती है. दिन भर उन्हें थाने में रखा जाता है और जैसे ही रात होती है पुलिस पूरी तैयारी के साथ उन अपराधियों के सामने आकर खड़ी हो जाती है. पुलिस सोच चुकी थी इस बार कुछ ऐसा करना होगा जिससे फिर कोई अपराधी अपराध करने का विचार अपने मन में ना ला सकें.
रात के समय नवगछिया थाने में पहले अपराधी को पेश किया जाता है. अपराधी की आंखों में जरा भी खौफ नहीं था. शायद सोच रहा होगा की क्या ही हो जाएगा, आज पकड़ा है, कल छोड़ भी दिया जाएगा. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला था. पुलिस ने अपराधी के हाथ पैर बांधे, अपने औजारों में से एक मोटी सुईं जिसे बिहार में टकवा कहा जाता है, एक सिरिंज, और एसिड यानी तेजाब (जिसे उन्होंने गंगाजल का नाम दिया) इन सभी चीजों को निकाला और इससे पहले कि वह अपराधी कुछ सोच पाता कि एक पुलिस वाले ने उस मोटी सुईं से सबसे पहले अपराधी की दोनों आंखें फोड़ दी और उसके बाद सिरिंज में गंगाजल यानी तेजाब भरकर उन आंखों में डाल दिया. देखते ही देखते सारा थाना दर्द की चीखों से गूंज उठा. लेकिन इस बार उन चीखों को सुनने वाला वहां कोई नहीं था. इस घटना को पुलिस ने ऑपरेशन गंगाजल का नाम दिया.
दिन के उजाले में भागलपुर पुलिस अपराधियों को पकड़ कर लाती और रात होते ही ऑपरेशन गंगाजल को अंजाम दिया जाता. इसके बाद पुलिस खुद ही सुबह उन अपराधियों को अस्पताल लेकर जाती और धमकी देकर वहां उनका इलाज कराया जाता. नवगछिया थाने से शुरू हुआ यह सिलसिला अब पूरे भागलपुर में अपनाया जाने लगा और ऐसे ही एक-एक कर करीब 3 दर्जन से ज्यादा अपराधियों के साथ इस वारदात को अंजाम दिया गया.
आलम यह हुआ कि अब भागलपुर जोकि आपराधिक घटनाओं के लिए जाना जाता था आज वहां शांति की लहर दौड़ने लगी थी. अपराधियों में खौफ दिखने लगा था. उस समय वहां के एसएसपी विष्णु दयाल राम बताए जाते हैं. अक्टूबर 1979 से शुरू हुआ ऑपरेशन गंगाजल का यह है सिलसिला जुलाई 1980 यानी लगभग 11 महीनों तक चला. उस समय बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा थे और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हुआ करती थी.
यह मामला सुर्खियों में तब आया जब तीन दर्जन अपराधियों में से इकलौते सरदार अपराधी बलजीत सिंह के घरवाले उसे जेल से निकालकर दिल्ली एम्स में इलाज कराने ले गए. इलाज के दौरान एम्स के डॉक्टर ने बलजीत की आंखों में तेजाब डालने की पुष्टि की. जिसके बाद बलजीत के घरवालों ने एक वकील किया और सबके सामने अपनी बात को रखा. इसके बाद एक-एक कर ऐसे 11 अपराधी लोगों के सामने आए. एम्स के डॉक्टर ने अपनी एक रिपोर्ट तैयार की जिसके अंदर लिखा गया की इन 11 लोगों की आंखें पहले फोड़ी गईं और उसके बाद आंखों में तेजाब डाला गया. डॉक्टर के इस रिपोर्ट के बाद एक लोकल वकील द्वारा पुलिस प्रशासन पर केस कर दिया गया.
केस की सुनवाई शुरू हुई और अलग-अलग पुलिसवालों को इसमें शामिल किया गया. मामले पर मौजूदा एसएसपी विष्णु दयाल राम का कहना था कि यह घटना उनके एसएसपी बनने के पहले से चली आ रही थी. जिस वक्त एसएसपी के तौर पर उनकी पोस्टिंग भागलपुर में हुई थी उससे पहले ही 12 ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया गया था. उन्होंने इस घटना को रोकने का प्रयास भी किया लेकिन विफल रहे.
पटना हाईकोर्ट ने इस मामले को सीबीआई के हाथ में सौंप दिया. कुल 10 पुलिसवालों को सीबीआई ने अपनी जांच में दोषी ठहराया. लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि उन 10 पुलिसकर्मियों में से केवल दो लोगों को ही हिरासत में लिया गया. जिसका एक कारण था भागलपुर की जनता.
दरअसल, पुलिस द्वारा चलाए गए ऑपरेशन गंगाजल के बाद भागलपुर में क्राइम का दर मानो खत्म हो गया था. वहां के लोग अब बिना किसी खौफ के अपनी जिंदगी जीने लगे थे. लड़कियां बिना डरे सड़कों पर घूमने लगी थी. इस बात से भागलपुर की जनता पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा और पुलिस को भागलपुर की जनता का पूरा साथ मिला. चाहे पढ़ा-लिखा तबका हो या अनपढ़ लोग, हर कोई पुलिस के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ा था. यही वजह थी की पुलिस के ऊपर चल रही कार्रवाई को पटना हाई कोर्ट को रोकना पड़ा. ऐसे में सवाल यह है कि पुलिस द्वारा चलाया गया ऑपरेशन गंगाजल किस हद तक सही था.
मामले के प्रकाश में आने के बाद इसी मुद्दे पर फिल्मकार प्रकाश झा ने गंगाजल मूवी बनाई थी. जिसमें अजय देवगन को लीड रोल में देखा जा सकता है.