Patna: हिंदुस्तान ने आजादी के बाद से अब तक सैकड़ों दंगे झेले हैं. धार्मिक कट्टरता व सांप्रदायिकता ने क्या हिंदू और क्या मुसलमान हर कौम की मां के कोख सूने किए हैं और कौम की औरतों को बेवा बनाया है. 


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भागलपुर दंगा उन्हीं सैकड़ों दंगों में से एक है. सरकारी कागजों में यह सांप्रदायिक दंगा करीब दो माह तक चला लेकिन भागलपुर के लोगों को मानना है कि इस दंगे की आग कमसे कम 6 माह तक जलती रही थी. 


इसमें दोनों की कौंमों के हजारों लोग मारे गए थे. इसी हिंसा के दौरान एक अधिकारी का नाम राष्ट्रीय स्तर पर आया और वह नाम था जिले के एसएसपी केएस द्विवेदी. आज भी पुलिस बिरादरी में केएस द्विवेदी बेहद काबिल  पुलिस अधिकारी माने जाते हैं. केएस द्विवेदी के ट्रांसफर के मामले को हम समझेंगे लेकिन उससे पहले समझते हैं क्या है मामला.


जानें कैसे शुरू हुआ था भागलपुर सांप्रदायिक दंगा
24 अक्टूबर 1989 के दिन राम मंदिर जुलूस शहर में आना था. शहर के मुख्य मार्ग से होकर जुलूस को शहर में आने की अनुमति थी. इस समय कानून व्यवस्था को कोई हाथ में न ले इस बात की देखरेख खुद एसएसपी केएस द्विवेदी कर रहे थे. शहर के ततारपुर चौक पर रहने वाले एक समुदाय के लोग वहां से होकर जुलूस शहर में प्रवेश नहीं करने देने पर अड़ गए. वहीं, दूसरा पक्ष इस बात पर अड़ गया कि यही रास्ता सीधा शहर में जा रहा है ऐसे में किसी भी कीमत में इसी तरफ से जुलूस शहर में प्रवेश होगा. दोनों पक्षों के बीच टकराव की स्थिति देख केएस द्विवेदी ने मोर्चा संभाला. इसी बीच एक समुदाय के लोगों ने राम मंदिर जुलूस पर पत्थरबाजी और फिर बमबाजी शुरू कर दी. इसमें शहर के एसएसपी को भी निशाना बनाया गया. किसी तरह जीप के नीचे छिपकर एसएसपी ने जान बचाते हुए हालात कंट्रोल करने के लिए फायरिंग की. लेकिन, इसके बाद जो हुआ वह सबके सामने है.


केएस द्विवेदी की पोस्टिंग किस हालात में भागलपुर में हुई थी
इस घटना के बारे में कई मुंह कई बात सुनने को मिलती है.लेकिन, सच यह है कि इस घटना से पहले ही केएस द्विवेदी कुछ लोगों के निशाने पर आ गए थे. द्विवेदी की तैनाती भागलपुर के एसपी के पद पर हुई थी वह काफी चुनौतीपूर्ण समय था. उस वक्त सिल्क नगरी में अपराध चरम पर था. कांग्रेस से संबंध रखने वाले असामाजिक तत्वों ने एक डॉक्टर की बेटी को दिनदहाड़े अपहरण कर लिया था. उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद थे लेकिन भागलपुर की इस घटना की वजह से उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी थी. 


भागलपुर को शांत बनाने के लिए कई गैंग को किया था समाप्त
इसके बाद जब यहां केएस द्विवेदी को भेजा गया तो उन्होंने शमुआ मियां गिरोह, शल्लन मियां, इनायतुल्ला अंसारी आदि गिरोह को समाप्त करने का ठान लिया था. ऐसे में जुलूस से पहले ही केएस द्विवेदी कुछ लोगों के निशाने पर आ गए थे. इसके बाद ऐसा समाज में फैलाया गया कि एसएसपी एक समुदाय के समर्थक हैं. इसी का परिणाम हुआ कि केएस द्विवेदी पर दंगा में सही से अपनी भूमिका नहीं निभाने के भी आरोप लगे, जिसे बाद में हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने खारीज कर दिया.


दंगा के बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट में आया केएस द्विवेदी का नाम 
आरोपों की जांच के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ने हाईकोर्ट के तीन जजों की एक जांच कमेटी बनाई थी. इस कमेटी के दो सदस्यों ने संयुक्त रिपोर्ट में एसपी द्विवेदी के खिलाफ टिप्पणी की थी जबकि जांच कमेटी के अध्यक्ष ने अपनी रिपोर्ट में एसपी को क्लीनचिट दी थी. एसपी द्विवेदी के अलावा कुछ अन्य पुलिसकर्मियों पर भी जांच कमेटी ने प्रतिकूल टिप्पणी की थी.कमेटी की टिप्पणियों के खिलाफ सभी पुलिसकर्मियों ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. बाद में 1996 में हाईकोर्ट ने कमेटी की रिपोर्ट से प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था. इस तरह केएस द्विवेदी के खिलाफ लगे सारे आरोप खारिज हो गए थे.


जब दंगा के बाद प्रधानमंत्री ने केएस द्विवेदी का तबादला रोका
इस घटना के बाद खुद प्रधानमंत्री राजीव गांधी जायजा लेने के लिए भागलपुर पहुंचे थे. तब इनके तबादले की खबर के विरोध में कर्फ्यू के बावजूद जुलूस निकाला गया था. इसके बाद प्रधानमंत्री को  तबादला रोकने के लिए आदेश देना पड़ा था. हालांकि, वह राज्य सरकार द्वारा बानाए जांच कमेटी के आरोपों का सामना करते रहे बाद में हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से द्विवेदी को क्लीन चिट मिल गया था.


राज्य के डीजीपी बनकर हुए सेवानिवृत्त
1984 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी द्विवेदी मूल रूप से उत्तर प्रदेश से हैं. उनका गृह जिला जालौन है. दंगा के बाद लगे आरोपों के खारिज होने के बाद द्विवेदी अपने कामों की वजह से लगातार अवार्ड जीतते रहे और प्रमोशन पाते रहे. आखिरकार एक मार्च को वह बिहार राज्य के डीजीपी बन गए. इसी पद पर रहते हुए वह नौकरी से सेवानिवृत्त हुए.