पटनाः Lohri Festival 2023: लोहड़ी का उत्सव पूरे देशभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. लोहड़ी के त्यौहार की रौनक पूरे उत्तर भारत में देखते ही बनती है. इस दिन सूर्य भगवान और अग्नि देवता का अच्छी फसल की कटाई के धन्यवाद किया जाता है.  इस दिन लोग अलाव जलाते हैं, एक-दूसरे को गजक, मूंगफली और मिठाइयां देते हैं. ढोल-नगाड़े बजाकर लोहड़ी का जश्न मनाते हैं. लोहड़ी का पर्व सुख-समृद्धि और खुशियों का प्रतीक है. लोग इस त्योहार को मिलजुल कर धूमधाम से मनाते हैं. खुशियों से गीत गाते है और ढोल-नगाड़े बजाकर जश्न मनाते हैं. लोहड़ी पर्व की कुछ खास परंपराएं होती हैं जिनके बिना लोहड़ी का त्यौहार अधूरा माना जाता है. तो चलिए जानते है ऐसी 4 परंपराओं के बारे में जिनके बिना लोहड़ी का पर्व अधूरा रह जाता है. 


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लोहड़ी पर्व की खास परंपरा 
- हिन्दू पौराणिक शास्त्रों में अग्नि को देवताओं का मुख माना गया है.इसलिए लोहड़ी पर्व के दिन अलाव जलाने के बाद परिवार के सदस्य, दोस्त और दूसरे करीबीजन मिलजुलकर अग्नि की परिक्रमा जरूर करते हैं. अलाव की परिक्रमा करने के दौरान तिल, मूंगफली, गजक, रेवड़ी, आदि चीजें अग्नि में समर्पित की जाती हैं. जिसके बाद उन सभी चीजों को प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है. ये परंपरा हर कोई अपनाता है. 


- लोहड़ी वाले दिन लोग नए कपड़े पहनते है. लोहड़ी का त्यौहार रात को ही मनाया जाता है. अग्नि जलाकर, ढोल-नगाड़े बजाकर,डांस करते हुए जश्न मनाया जाता है. पुरुष और महिला मिलजुलकर एक दूसरे के साथ भांगड़ा और गिद्दा करते हैं. गिद्दा करे बिना ये पर्व अधूरा रह जाता है. 


- लोहड़ी के दिन दुल्ला भट्टी की कहानी को विशेष रूप से सुना जाता है. ऐसा मान्यता है कि मुगल काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था. कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था. दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी करवाई थी. तभी से दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया जाने लगा और हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाई जाती है.


- लोहड़ी के मौके पर ढेर सारे गीत गाते हैं. आज के दिन एक दूसरे से मिलकर गले मिलकर लोहड़ी की बधाई देते हैं. नई बहुओं के लिए ये दिन और भी विशेष होता है.


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