पटनाः बिहार के मिथिलांचल में मधुश्रावणी पूजा की शुरुआत हो गई है. इस पूजा को लेकर मिथिलावासी में काफी आस्था है. यहां के लोग इस पूजा के लिए कई सारे त्याग करने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस पूजा के दौरान व्रती महिला खुद ही जलने के लिए भी तैयार हो जाती है. 


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जलती टेमी से महिला को दागना जरूरी
मिथिलांचल से दूर रहने वाले लोग भले ही इस परंपरा को अंधविश्वास के साथ जोड़ते हो, लेकिन मिथिलांचलवासी इसे आस्था से जोड़कर ही देखते है. वहां के लोग बड़ी ही शिद्दत के साथ इस त्यौहार को मनाते है. मधुश्रावणी पूजा को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस पूजा के दौरान नवविवाहिता व्रती महिला को जलती टेमी से दागना जरूरी होता है. 


फफोलों से लगाते हैं अथाह प्रेम का अंदाज
महिला को जलती टेमी से दागने को लेकर ऐसी मान्यता कि ऐसा करने से पैरों और घुटने पर जो फफोले आते हैं वो पति और पत्नी के बीच प्रेम को दर्शाते हैं. कहा जाता है कि जितना बड़ा फफोलों का आकार होगा. उतना ही ज्यादा पति पत्नि के बीच प्रेम होगा. वहीं इस फफोलों को लेकर एक और भी मान्यता है, कहा जाता है कि व्रती महिलाओं में फफोलों का आकार जितना बड़ा होगा. उस महिला में सहनशक्ति भी उतनी ही अधिक होगी. वो अपने परिवार और पति के प्रति कितनी श्रद्धा रखती है. इस बात का अनुमान भी फफोलों के आकार से ही लगाया जाता है.


ऐसे शुरू होती है दागने की प्रक्रिया शुरू
महिला को दागने के दौरान नवविवाहिता के घुटने पर पत्ता रखा जाता है और उस पत्ते को जलती हुई बाती से दागा जाता है. इस दौरान पति पत्ते से अपनी व्रती पत्नी की आंखें बंद करता है और फिर जाकर टेमी दागने की परंपरा खत्म होती है.


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