Caste Census: बिहार में जातिगत जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना जवाब दाखिल कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए जवाब में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्रीय सूची में आता है. इस कारण से केंद्र के अलावा कोई और सरकार जनगणना की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे सकता. 7 दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने जातीय जनगणना (Caste Census) की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया था कि जब तक याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई ठोस पुख्ता सबूत पेश नहीं किया जाता, जब तक इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती.


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पिछले सप्ताह 21 अगस्त को इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उस समय नया मोड़ आ गया, जब केंद्र सरकार नए पक्षकार के तौर पर सामने आ गई. केंद्र सरकार का कहना है कि जनगणना कराने का अधिकार उसका है और जनगणना का काम संविधान के केंद्रीय सूची में अंकित है. लिहाजा और कोई उस पर कोई कानून नहीं बना सकता. केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि वह खुद ही अनुसूचित जाति/जनजाति/सामाजिक और शैक्षणिक लोगों के उत्थान की कोशिश में लगी है. सुप्रीम कोर्ट अगर केंद्र की इस दलील से राजी होता है तो बिहार सरकार के लिए यह किसी झटके से कम नहीं होगा.


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सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एस. वेंकटरमन भट्टी की पीठ के सामने बिहार में जातीय जनगणना मामले की सुनवाई हुई थी. इस दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए थे. बताया जाता है कि तुषार मेहता को देखकर कोर्ट में सभी लोग चौंक गए थे. मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वे कुछ सबमिशन दाखिल करना चाहते हैं, इसलिए सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई एक सप्ताह के लिए टाल दी थी.


पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, दो बातें हैं- एक है आंकड़ों का संग्रह, जिसकी कवायद अब समाप्त हो गई है और दूसरा है उन आंकड़ों का विश्लेषण. यह पार्ट अधिक मुश्किल है. इस बात का आधार बनाने से पहले हम इस पर रोक नहीं लगा सकते. बिहार सरकार ने कहा था कि हम डेटा का प्रकाशन नहीं करने जा रहे. 


(Inputs: Arvind Singh)