पटनाः Navratri Draupadi Katha: नवरात्रि के दिन समाप्त ही होने वाले हैं. दशहरा के साथ नौ दिन का यह आध्यात्मिक पर्व समाप्त हो जाएगा. ये नौ दिन देवी मां अंबिका के विभिन्न स्वरूपों को जानने समझने के दिन हैं. असल में देवी ने अलग-अलग युगों में कई अवतार लेकर संसार का कल्याण किया है. इसी तरह महाभारत में भी देवी का एक अंशावतार है. यह वही स्त्री है जो महाभारत में बहुत महत्वपूर्ण पात्र है. इसका नाम द्रौपदी है और असल में ये देवी काली, जो कि दुर्गा जी की ही एक शक्ति हैं, उनका ही अंशावतार है. द्रौपदी को 64 योगिनियों में से एक खप्पर योगिनी भी कहा जाता है. 


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भीम ने देखा अचंभित करने वाला दृष्य
इस संबंध में महाभारत के आदिपर्व में एक कथा मिलती है. एक दिन इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर द्रौपदी के कक्ष में थे. भीम उधर से गुजर रहे थे, अचानक उनकी निगाह खिड़की से कक्ष की ओर पड़ गई. उन्होंने देखा, बड़े भैया द्रौपदी के पांव दबा रहे हैं और द्रौपदी पलंग पर खप्पर लिए बैठी है और बड़े ही क्रोध से युधिष्ठिर को देख रही है, बीच बीच में कह रही हैं मैं तुम सबको खा जाऊंगी, रक्त पियूंगी. भीम ये देखकर क्रोधित हुए और कुछ समझ नहीं पाए. उन्हें कृष्ण का ध्यान आया. उनकी माया वो पहले ही जानते थे, पर कभी समझ नहीं पाए थे. भीम ने कृष्ण का ध्यान किया तो कृष्ण सामने आ गए. भीम ने कहा कि अर्जुन तुमसे बहुत सवाल करता है, मैं आयु में तुमसे और अर्जुन दोनों से बड़ा हूं, इसलिए आज मुझे भी कुछ बता दो.


कृष्ण ने बताया ये उपाय
कृष्ण ने कहा, पूछिए क्या पूछते हैं? भीम ने कहा तुम्हारी माया क्या है? मुझे भी दिखा दो. इस पर कृष्ण कहते हैं, अच्छा, आज की रात आप चुपचाप वन चले जाइएगा, और तालाब के किनारे एक वृक्ष है उस पर बैठ जाइएगा. भीम ने ऐसा ही किया. उधर रात गहराई और अचानक ही वहां प्रकाश फूटा और सरोवर के किनारे कई सिंहासन लग गए. थोड़ी देर में इंद्र मारूत आदि देवता और योग योगिनियां भी प्रकट हुईं. इसके बाद भीम ने देखा कि द्रौपदी अपने उसी भयानक रूप में चली आ रही है, पीछे महाराज युधिष्ठिर समेत उनके सारे भाई और सबसे पीछे नारायण भी हैं. द्रौपदी सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठ गई. युधिष्ठिर ने फिर से क्षमा मांगते हुए अभयदान मांगा तो द्रौपदी क्रोध में फुंफकारने से लगी. भीम ने देखा कि क्रोधित हुई द्रौपदी का रंग काला पड़ने लगा और वह धीरे धीरे काली मां में ही बदल गई. अब वहां जो भी योगिनी उपस्थित थीं वह सब रक्तं देही कहने लगीं और खप्पर पटकने लगीं.


डर के मारे भीम हो गए बेहोश
भीम यह सब देख कर मूर्छित हो गए. होश आया तो सामने कृष्ण खड़े थे. उन्होंने पूछा कि क्या देखा? भीम ने कहा, आपकी माया. कृष्ण ने कहा,। कोई उपाय है? भीम ने कहा आप बताइए. कृष्ण ने कहा, आज दोपहर जब द्रौपदी भोजन परोसे तो खाना मत, छूना भी मत और जब पूछे कि क्या चाहिए? तो कहना एक वचन. भोजन परोसते हुए द्रौपदी मना नहीं कर सकेगी. भीम ने ऐसा ही किया. पांचाली ने पूछा, क्या चाहिए.. भीम ने तपाक से कहा, हम पांचों को अभय.. द्रौपदी ने अभी ये सुना ही था कि कृष्ण आ गए और बोल पड़े कि छठे प्राण मेरे भी छोड़ दो. 


इस तरह बचे पांडवों के प्राण
द्रौपदी खीझ गई और इसी दौरान कुछ बोलने की कोशिश में उसकी जीभ दांत के बीच आ गई. इससे जीभ को घाव लग गया और जमीन पर रक्त की छह बूंदें गिर गईं. इतने में द्रौपदी सावधान हो गई और अन्य बूंदें गिरने से बचा लिया. फिर उसने कहा, ठीक है माधव, जैसा आप कहें. ऐसा कहते ही, पांडवों और कृष्ण को अभयदान मिल गया. महाभारत युद्ध में यही योद्धा जीवित बचे. बाकी मारे गए या फिर श्राप झेलते रहे. युद्ध में अर्जुन नारायण का निमित्त बना, नारायण काली के लिए माध्यम बने और काली का कालरात्रि अवरात्र महाभारत में खप्पर भर भर कर रक्त पीता रहा. द्रौपदी असल में कौन है इसकी बानगी हमें तब मिलती है जब वह दुशासन की छाती के लहूसे बाल धोती है. द्रौपदी के रूप में माता महाकाली ने ही अवतार लिया था ताकि कृष्ण के साथ मिलकर वह अधर्म का नाश कर सकें. 


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