पटनाः Navratri Katyayani Devi: आज शारदीय नवरात्रि का छठा दिन है. माँ कात्यायनी को माता दुर्गा के नौ रूपों में छठवां स्वरूप माना जाता है. इसलिए कात्यायनी देवी को छठवीं दुर्गा देवी के रूप में पूजा जाता है. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने, पुत्री के रूप में उनके यहां जन्म लिया. इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है. कात्यायनी शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘जो प्रबल और घातक दंभ को दूर करने में सक्षम हो. कई जगह यह भी संदर्भ मिलता है कि वे देवी शक्ति की अवतार हैं और कात्यायन ऋषि ने सबसे पहले उनकी उपासना की, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा.


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देवी का ही नाम महिषासुर मर्दिनी
जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया और ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया. तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी और दानव महिषासुर में घोर युद्ध हुआ. उसके बाद जैसे ही देवी उसके क़रीब गईं, उसने भैंसे का रूप धारण कर लिया. इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसका गर्दन धड़ से अलग कर दिया. महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है.


ऐसे प्रकट हुई थीं देवी
इससे पहले जब महिषासुर ब्रह्म देव से वरदान पाकर अनाचारी हो गया था, तब उसके पाप बहुत बढ़ गए थे. महिषासुर ने धरती से लेकर आकाश-पाताल तक उत्पात मचा रखा था. उसे वरदान था कि कुमारी कन्या ही उसका वध कर सकती है, इसलिए वह सहज ही देवताओं को जीतता चला गया. जब उसका अत्याचार बढ़ गया तब सभी देवता एक स्थान पर इकट्ठे हुए और उनके क्रोध से उनसभी की शक्ति का एक पुंज निकल कर ज्योति बन गया. इसी ज्योति ने कुछ देर में शरीर रूप में आकार लिया. माता के आठ हाथ थे तो उन्हें अष्टभुजा माता कहा गया. सभी देवताओं ने उन्हें दिव्य अस्त्र, शस्त्र, और आभूषण दिए. इस तरह उनका परम शृंगार किया गया. देवी ने महिषासुर को ललकारा और फिर उसका वध कर दिया.


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