Parasnath Temple: जीवन में एक बार जहां आने की चाह रखते हैं जैन धर्मावलंबी, जानिए कैसे पहुंचें वहां तक
Parasnath Temple Giridih jharkhand: गिरिडीह में स्थित पारसनाथ पहाड़ी झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है. इसकी उंचाई लगभग 4,440 फीट है. यहां दामोदर और गरगा नदी भी समीप है. ऐसे में इस पहाड़ी की प्राकृतिक छटा बहुत ही मनोहारी है. जो आपके मन को मोह लेगी.
रांचीः Parasnath Temple Giridih jharkhand: जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और मशहूर तीर्थस्थल के बारे में आपको जानना एवं इसे देखना है तो आपको झारखंड के गिरिडीह जिले तक की यात्रा करनी होगी. यहां जैन धर्मावलंबी जीवन में एक बार जरूर आना चाहते हैं. उनके लिए यह दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. कहते हैं कि इसी पहाड़ी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया था. तो आइए हम आज आपको झारखंड के गिरिडीह जिले में पड़नेवाले पारसनाथ पहाड़ी की यात्रा पर ले चलते हैं.
झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है पारसनाथ
आपको बता दें कि गिरिडीह में स्थित पारसनाथ पहाड़ी झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है. इसकी उंचाई लगभग 4,440 फीट है. यहां दामोदर और गरगा नदी भी समीप है. ऐसे में इस पहाड़ी की प्राकृतिक छटा बहुत ही मनोहारी है. जो आपके मन को मोह लेगी.
जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी के शिखर को मानते हैं 'सम्मेद' शिखर
मान्यता है कि जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थकरों ने यहीं से मोक्ष को प्राप्त हुए थे. यहां पहाड़ी पर इन 20 तीर्थंकरों के चरण चिन्ह अंकित हैं. जिन्हें 'टोंक' कहा जाता है. यहां जैन धर्म के दोनों पंथों श्वेताम्बर और दिगम्बर के मंदिर बने हुए हैं. ऐसे में इसकी महत्ता ज्यादा बढ़ा जाती है. जैन धर्म के अनुयायी इस पहाड़ी की शिखर को 'सम्मेद शिखर' कहते हैं. इस स्थान को 'मधुबन' के नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है. इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23 वें तीर्थंकर 'पार्श्वनाथ' के नाम पर 'पारसनाथ' पड़ा. इस पहाड़ी पर 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराने कई मंदिर हैं. दुनिया भर के जैन धर्मावलंबी इस पहाड़ के दर्शन करने के साथ इस पहाड़ी की परिक्रमा करने भी आते हैं.
पहाड़ की तलहटी से लेकर चोटी तक जैन मंदिरों की भरमार
पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी से लेकर चोटी तक बड़ी संख्या में जैन मंदिरों की श्रृंखला आपको देखने को मिल जाएगी, यहां एक छोटा मोटा जैनियों का शहर बसा हुआ है. इसे लोग 'मधुबन' के नाम से भी जानते हैं. यहां पहाड़ी की प्राकृतिक खूबसूरती और हरियाली के बीच अगर आप मंदिर में दर्शन करने जाना चाहते हैं तो आपको 1000 से ज्यादा सीढ़ियां चढ़नी होंगी. यहां के बारे में आपको बता दें कि तलहटी से शिखर तक यहां लगभग 10 किलोमीटर की यात्रा पैदल करनी होती है.
संथाल आदिवासी भी इसे देवता की पहाड़ी कहते हैं
संताल आदिवासी इस पहाड़ी पर अपने आराध्य देव 'मारंग बुरु' का निवास मानते हैं. ऐसे में वह इस पहाड़ी को देवता की पहाड़ी भी कहते हैं. यह संथाल-आदिवासी की आस्था का भी सबसे बड़ा केंद्र है. यहां संथाल आदिवासी बैसाख पूर्णिमा में एक दिन का शिकार त्यौहार मनाते हैं.
कैसे पहुंचें पारसनाथ तक
यहां तक आने के लिए आपको कोई सीधी बस या ट्रेन की सेवा नहीं मिल पाएगी. पारसनाथ रेलवे स्टेशन भी यहां से 20 किलोमीटर की दूसीर पर स्थित है. यहां वायु मार्ग से आने के लिए आपको रांची एयरपोर्ट तक आना होगा वहां से सड़क मार्ग से यहां तक की दूरी आपको तय करनी होगी. यह पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है ऐसे में यहां यात्रा बहुत संभलकर करनी होती है.
यह भी पढ़ेंः Aaj ka Panchang: रामनवमी और सिद्धदात्री पूजा, पञ्चांग में जानिए शुभ तिथि मुहूर्त और पूजा विधि