Bihar Freedom Fighter: गोली लगी तो हाथ काटकर गंगा में किया प्रवाहित, 80 साल की उम्र में अंग्रेजों के छुड़ाए पसीने, ऐसे थे बिहार के बाबू वीर कुंवर सिंह
Bihar Freedom Fighter: वर्ष 1857 में जब देश आजादी की पहली लड़ाई लड़ रहा था तब एक तरफ नाना साहब, तात्या टोपे अंग्रेजी हुकूमत से डटकर लोहा ले रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ महारानी रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल जैसी वीरांगनाएं भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मैदान में थी.
आजादी की पहली लड़ाई
अंग्रेजी शासकों ने साल 1848-49 में जब विलय नीति अपनायी, तो भारत के बड़े-बड़े शासकों में अंग्रेजों के खिलाफ रोष और डर जाग गया था. अंग्रेजों की ये बात वीर कुंवर सिंह को तब रास नहीं आयी और वह अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े हुए.
दानापुर रेजिमेंट
कुंवर सिंह ने इसके बाद दानापुर रेजिमेंट, रामगढ़ और बंगाल के बैरकपुर के सिपाहियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हमला बोल दिया. अपने पराक्रम से उन्होंने आरा शहर, जगदीशपुर और आजमगढ़ को अंग्रेजों के कब्जे से आजाद कराया.
वीर कुंवर सिंह की कहानी
वर्ष 1958 में बाबू वीर कुंवर सिंह जब जगदीशपुर के किले पर अंग्रेजों का झंडा उखाड़कर अपना झंडा फहराने के बाद अपनी पलटन के साथ बलिया के पास शिवपुरी घाट से नाव में बैठकर गंगा नदी पार कर रहे थे. तभी अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया और उन पर गोलीबारी शुरू कर दी. इसी गोलीबारी में कुंवर सिंह के बायें हाथ में गोली लग गयी.
आजादी के सिपाही
बांह में गोली लगने के बाद उसका जहर पूरे शरीर में फैलने लगा. कुंवर सिंह तब ये नहीं चाहते थे कि उनका शरीर जिंदा या मुर्दा अंग्रेजों के हाथ लगे. जिसके बाद अपनी तलवार से उन्होंने गोली लगे बांह को काट दिया और उसे गंगा नदी को समर्पित कर दिया.
बाबू वीर कुंवर सिंह
एक हाथ कट जाने के बावजूद उन्होंन एक हाथ से ही अंग्रेजों का सामना किया. घायल होने के बावजूद उनकी हिम्मत नहीं टूटी और अंत समय तक वो अंग्रेजों के हाथ नहीं आये.