पटनाः Importance of Til: श्राद्ध पक्ष में तर्पण और पिंडदान में जो वस्तु सबसे प्रमुखता से दिखाई देती है वह है तिल. तर्पण में तिल व कुशा का विशेष महत्व है. वायु पुराण के अनुसार तिल और कुशा के साथ श्रद्धा से जो कुछ पितरों को अर्पित किया जाता है वह अमृत रूप होकर उन्हे प्राप्त होता है. पितर किसी भी योनि में हों उन्हें वह सब उसी रूप में प्राप्त होता है. पितृपक्ष के दौरान पितरों की सद्गति के लिए पिण्डदान और तर्पण के लिए काले तिल और कुश का उपयोग किया जाता है. तिल और कुश दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं और पितरों को भी भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है. गरुण पुराण के अनुसार तिल तीन प्रकार के श्वेत, भूरा व काला होते हैं. यह क्रमश: देवता, मनुष्य व पितरों को तृप्त करने वाला होता है.


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भगवान विष्णु को तिल है प्रिय
काला तिल भगवान विष्णु का प्रिय है और इसे देव अन्न माना जाता है. इसलिए पितरों को भी तिल बहुत प्रिय है. यही वजह है कि काले तिल से ही श्राद्धकर्म करने का विधान बताया जाता है. मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाए, तो उसे दुष्ट आत्माएं ग्रहण कर लेती हैं. गरुण पुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं. कुश का अग्रभाभ देवताओं का, मध्य मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है. वहीं तिल पितरों को प्रिय और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं. माना जाता है तिल का दान कई सेर सोने के दान के बराबर होता है. इनके बिना पितरों को जल भी नहीं मिलता.


ऐसे हुई तिल की उत्तपत्ति
तिल की उत्पत्ति का भी पौराणिक कथाओं में जिक्र है. बताया जाता है कि जब हिरण्य कश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को लगातार कष्ट देकर परेशान कर रहा था तो यह देखकर भगवान विष्णु क्रोध से भर उठे. क्रोधित होने के कारण गुस्से में उनका सारा शरीर पसीने से भर गया. यह पसीना जब जमीन पर गिरा तब तिल की उत्पत्ति मानी जाती है. तिल को गंगाजल के ही समान पवित्र माना गया है. माना जाता है कि जिस तरह गंगा जल का स्पर्श मृत आत्माओं को वैकुंठ के द्वार तक पहुंचा देता है ठीक इसी तरह तिल भी पूर्वजों, भटकती आत्माओं और अतृप्त जीवों को मोक्ष का मार्ग दिखाता है.


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