पटनाः Pitru Visarjan 2022: श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो गई है.  इनका समापन 25 सितंबर को होगा. पितरों की मुक्ति के लिए इन दिनों पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. पितृपक्ष में परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है और वह पिंडदान, श्राद्ध कर्म करने की इच्छा से अपनी संतान के पास रहते हैं. श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं और उन्हें जल देकर तृप्त करते हैं. 


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देशभर में 55 स्थानों पर होता है पिंडदान
सनातन परंपरा में यह मान्यता है कि आत्मा अजर और अमर होती है. ऐसे में मृत्यु के बाद मनुष्य का शरीर तो नष्ट हो जाता है, जबकि आत्मा दर-बदर भटकती रहती है. भटकती हुई आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध एवं पिंडदान की क्रियाएं की जाती है. पिंडदान व श्राद्ध कर्म करने के लिए देशभर में 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन बिहार का गया तीर्थ सर्वोपरि है. गया तीर्थ में फल्गु नदी के तट पर बालु का भी पिंडदान किया जा सकता है और यह चावल के पिंडदान के बराबर ही मान्य होता है. 


जानिए पिंडदान में उपयोग होने वाली सामग्री
पितृ पक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं. इसी के साथ ही वो घर में अच्छी संतान के होने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं. इसीलिए श्राद्ध करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है. जो लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और पिंडदान नहीं करते हैं उनकी पितरों की आत्मा कभी तृप्त नहीं होती है. उनकी आत्मा अतृप्त ही रहती है. श्राद्ध में तर्पण करने के लिए तिल, जल, चावल, कुशा, गंगाजल आदि का उपयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए. उड़द, सफेद पुष्प, केले, गाय के दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, जौ, मूंग, गन्ने आदि का इस्तेमाल करते हैं श्राद्ध में तो पितर प्रशन्न होते हैं और घर में सुख शांति बनी रहती है.


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