Rama Ekadashi 2022: कल रमा एकादशी, व्रत करने से होगी मोक्ष की प्राप्ति, मिलेगी पापों से मुक्ति
Rama Ekadashi 2022: दिवाली से पहले आने वाली इस एकादशी का विशेष महत्व होता है. रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है. यह कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी जैसे अन्य नामों से भी लोकप्रिय है.
पटनाः Rama Ekadashi 2022: दिवाली से पहले आने वाली इस एकादशी का विशेष महत्व होता है. रमा एकादशी को सबसे शुभ और महत्वपूर्ण एकादशी माना जाता है. यह कार्तिक कृष्ण एकादशी या रम्भा एकादशी जैसे अन्य नामों से भी लोकप्रिय है. भक्त धार्मिक रूप से इसे मानकर अपने सभी पापों से वंचित हो सकते हैं. इस दिन भक्त मां लक्ष्मी के रमा स्वरूप की पूजा-अर्चना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से माता बहुत जल्द प्रसन्न होती हैं और इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.
रमा एकादशी का शास्त्रीय महत्व
ब्रह्मा वैवर्त पुराण के अनुसार, रमा एकादशी व्रत का पालन करके पर्यवेक्षक अपने पिछले पापों से मुक्ति पा सकते हैं. भक्त जो इस दिन भगवान विष्णु की महिमा सुनते हैं, मोक्ष प्राप्त करते हैं. इस व्रत को करने से प्राप्त गुण कई अश्वमेध यज्ञों और राजसूय यज्ञों द्वारा किए गए गुणों से कहीं अधिक हैं. भक्त जो इस उपवास का पालन समर्पण और श्रद्धा से करते हैं. वे अपने जीवन में भारी सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं.
पुराणों के मुताबिक रमा एकादशी व्रत से कामधेनु और चिंतामणि के समान फल मिलता है. इस व्रत को करने से समृद्धि और संपन्नता बढ़ती है. इस व्रत से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं. पद्म पुराण का कहना है कि रमा एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा भी मिलती है. जिसके प्रभाव से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं. मृत्यु के बाद विष्णु लोक मिलता है.
रमा एकादशी व्रत पूजन विधि
रमा एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत करने के लिए संकल्प लें. जिस प्रकार आप व्रत कर सकते हैं, उसी के अनुसार संकल्प लें, जैसे- यदि पूरा दिन निराहार रहना चाहते या फिर एक समय फलाहार करना चाहते हैं. इसके बाद तांबे के लोटे से सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें. इस एकादशी पर तुलसी, आंवले और पीपल के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है. फिर एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं. फिर उस पर लाल कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं. चावल और फूलों से कुमकुम की पूजा करें. इसके बाद चौकी पर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की तस्वीर या प्रतिमा रखें. इसके बाद भगवान श्री लक्ष्मी नारायण की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार से पूजा करें.
यदि आप स्वयं पूजा नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण को पूजा के लिए बुलाएं. देवी लक्ष्मी की लाल पुष्प से पूजा करनी चाहिए. फिर धूप और दीप, अगरबत्ती जलाएं. उनको फूलों का हार चढ़ा कर मस्तक पर चंदन का तिलक लगाएं. इसके बाद भगवान को नैवेद्य, नारियल, फूल, प्रसाद का भोग लगाएं. भगवान विष्णु को तुलसी, माखन और मिश्री का भोग लगाएं तो अति उत्तम रहेगा. भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें. फिर भगवान विष्णु की आरती करें, कथा का श्रवण करें. जो लोग कथा का पाठ नहीं कर सकते हैं उन्हें व्रत कथा सुननी चाहिए. प्रसाद भक्तों को बांट दें.
शाम को भी भगवान की पूजा और संकीर्तन करें. इस एकादशी पर दीपदान भी किया जाता है. एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है. अगले दिन प्रातः उठकर पूजा पाठ करने के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाएं. उन्हें दान दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करें. उसके बाद स्वयं व्रत का पारण (भोजन ग्रहण) करें.
तुलसी, आंवले और पीपल पेड़ की पूजा करने की परंपरा
तुलसी, आंवले और पीपल पेड़ की पूजा इस एकादशी पर तुलसी, आंवले और पीपल के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है. कार्तिक महीना होने से इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है. इस दिन इन तीनों पेड़-पौधों की पूजा करने से कई यज्ञों को करने का पुण्य मिलता है. इस एकादशी पर दीपदान भी किया जाता है. इस दिन तुलसी, आंवले और पीपल के पेड़ सहित मंदिरों और नदी, तालाबों के किनार दीपदान करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.
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