Satta Matka King: देश में टॉप के सट्टेबाजों की बात करें तो रतन खत्री का नाम लिस्ट में सबसे पहले आता है. यह एक ऐसा शख्स है जो रोजाना सट्टेबाजी में 1 करोड़ रुपये कमाता था. बीते दिनों इन्होंने सट्टे में कमाया सारा पैसा यहीं छोड़ दुनिया को अलविदा कह दिया. इनके बारे में बता दें कि देश के विभाजन के दौरान यह पाकिस्तान के कराची से मुंबई आकर बस गए. रतन काफी तेजतर्रार और चालाक किस्म के व्यक्ति थे. सट्टेबाजी के बाजार में रतन 1962 में मटके की शुरुआत की. खेल ऐसा था कि एक मटके में कुछ नंबर डाले जाते है, इनमें से एक नंबर को ही लकी नंबर मान लिया जाता था. उस दौर में मात्र एक टेलीफोन ही संपर्क सूत्र था इसी के माध्यम से नंबर पूरे देश में बंट जाते थे. जैसे-जैसे खेल बढ़ता गया वैसे ही रतन का नाम भी बड़ा होता गया. देखते ही देखते रतन खत्री सट्टेबाजी के बाजार में सट्टा किंग के नाम से जानने लगे.


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रतन खत्री ने मटके खेल की शुरुआत वैसे अकेले ही की थी, बाद  में कल्याणजी गाला का साथ मिला और दोनों में मिलकर एक बार फिर सट्टे के बाजार में धूम मचा दी. कल्याणजी की बात करें तो वो एक सीधे-सादे आदमी थे, जो मात्र राशन की दुकान चलाते थे. दुकान पर आने वाले लोगों को सट्टे के बार में बताया करते थे. इस खेल की लोकप्रियता देख लोग भी उनसे जुड़ने लगे. इसके अलावा सूत्रों के अनुसार बता दें कि रतन खत्री को अपराधियों और पुलिस से डील करना आता था. जुंआ अवैध होता था इसलिए उनको स्थानीय पुलिस को रिश्वत देनी पड़ती थी और साथ ही अपराधियों को हफ्ता देने होता था.


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जब मटके का खेल फल फूल रहा था तो रतन खत्री ने एक बार फिर सट्टे के लिए तीन कार्ड चुनने का अनोखा तरीका निकाला. वो बहुत ही शातिर थे वो पब्लिक प्लेस पर घूमते हुए किसी भी रेंडम दुकानदार को चुनता और उससे भीड़ के बीच तीन कार्ड्स उठाने को कहता. इससे कार्ड चुनने में किसी तरह की चालाकी या बदमाशी जैसा डर भी लोगों के बीच नहीं रहा. खत्री ने काफी रुपये कमाएं और इसके बाद उन्होंने फिल्म मेकरों को फाइनेंस करना शुरू कर दिया. जानकारी के लिए बता दें कि रतन खत्री ने 1993 में मटके का खेल किसी कारण बंद कर दिया.


(Disclaimer: भारत में किसी भी तरह की जुआ गैरकानूनी है और  Zee मीडिया इसका किसी भी तरह से समर्थन नहीं करता है.)