नालंदा का सबरीमाला! मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित, जानें क्या है इसके पीछे का राज
Chaitra Navratri Special: बिहार के नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड में एक गांव ऐसा है, जहां हर साल चैत्र नवरात्र के समय गांव के अंदर बने मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर मंदिर के पुजारियों और ग्रामीणों के द्वारा पूर्ण रूप से वर्जित करा दिया जाता है.
नालंदा: Chaitra Navratri Special: बिहार के नालंदा जिले के गिरियक प्रखंड में एक गांव ऐसा है, जहां हर साल चैत्र नवरात्र के समय गांव के अंदर बने मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं के प्रवेश पर मंदिर के पुजारियों और ग्रामीणों के द्वारा पूर्ण रूप से वर्जित करा दिया जाता है. यह प्रथा आदि काल से ही चली आ रही है. बिहारशरीफ मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर घोसरावां गांव में नवरात्र के समय पूरे दस दिनों तक इस मंदिर में महिलाओं को अंदर प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी जाती है. यह नियम चैत्र नवरात्र और आसन माह नवरात्र के समय लागू रहता है.
पौराणिक प्रथानुसार इस मंदिर का नाम आशापुरी रखा गया है क्योंकि यहां बौद्ध काल में 18 सौ बौद्ध भिक्षु आकर अपनी मन्नत मांगते थे और उनकी मन्नतें भी पूरी होती थी. मंदिर के बारे में पुजारी पुरेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि नवरात्र के समय इस मंदिर में महिलाओं के ऊपर इसलिए प्रवेश वर्जित रहता है, क्योंकि यहां प्रतिपदा से लेकर दस दिनों तक विजयादशमी की आरती के पहले तक मंदिर में पूर्ण रूप से प्रवेश वर्जित रहता है. यह इलाका पूर्व से ही तांत्रिक का गढ़ माना गया है. यहां तांत्रिक लोग आकर सिद्धि प्राप्त करते थे. उसी समय से पूरे नवरात्र में यहां तांत्रिक पूजा यानी तंत्रियाण पूजा होती थी और तंत्रियाण पूजा में महिलाओं के ऊपर पूर्ण रूप से प्रवेश निषेध माना गया है. यह प्रथा आज से नहीं बल्कि आदि अनादि काल से ही चली आ रही है.
पूर्वजों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा घोष के द्वारा करवाया गया था. इसलिए इस गांव का नाम घोसरावां पड़ा. क्योंकि इस इलाके में आशापुरा माँ स्वयं प्रकट हुई थी और जिस स्थान पर प्रकट हुई वहां पर मंदिर का निर्माण करवाया गया. नवरात्र के समय इस घोसरावां मंदिर में बिहार के अलावे कोलकाता ओड़िसा मध्यप्रदेश आसाम दिल्ली झारखंड समेत पूरे बिहार जैसे दूरदराज इलाकों से आकर यहां दस दिनों तक पूजा पाठ करते है. जिससे उनकी मनचाहा मनोकामना पूरी होती है.
इनपुट- ऋषिकेश