पटना: Sankat Mochan Hanuman Ashtak: मंगलवार का दिन बजरंगबली हनुमान जी की पूजा का दिन है. इस दिन श्री रामदूत हनुमान जी को प्रसन्न किया जा सकता है. बजरंग बली को ये आशीष है कि वह शाश्वत चिरंजीवी हैं और कलियुग के जागृत देवता हैं. इसलिए तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में लिखा है कि वह सभी देवों से पहले अरदास सुनते हैं. 


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हनुमान अष्टक पाठ
ऐसे ही तुलसीदास जी की एक और रचना है जो हनुमान जी के लिए ही लिखी गई है, और बहुत सिद्ध है. इसे संकटमोचन हनुमान अष्टक के रूप में जाना जाता है.  जो कोई भी इसका पाठ नियमित करता है, उसके रोग शोक और प्रेत बाधा जैसे संकट भी हनुमान जी हर लेते हैं .


ऐसे लिखा गया हनुमान अष्टक पाठ
हनुमान अष्टक लिखे जाने की कथा भी बहुत दिलचस्प है. असल में जब तुलसीदास जी रामकथा लिख रहे थे तो एक भूत उन्हें बहुत परेशान कर रहा था.  वह रोज मानस के पन्ने गायब कर दे रहा था. इससे तुलसी जी बहुत परेशान हुए. तब उन्होंने हनुमान जी का ध्यान किया और उन्हें वो सारे बड़े बड़े काम याद दिलाए जो बचपन से लेकर अब तक उन्होंने श्रीराम की सेवा और जगत के कल्याण के लिए किए थे. फिर अन्त में उन्होंने कहा कि मैं भी प्रभु की भक्ति करना चाहता हूं, फिर कौन सा संकट है ऐसा जो इसमें बाधा बन रहा है और आप उसे दूर नहीं कर रहे हैं. 


हनुमान जी ने किया सिद्ध
तब हनुमान जी सामने आए और हर संकट से अभय कर दिया, इसके साथ ही उन्होंने तुलसीदास जी की इस रचना को भी सिद्ध कर दिया. जो भी कोई किसी भी मानसिक कष्ट की स्थिति में इसका पाठ करेगा, उसे अचूक लाभ मिलेगा. 


ऐसे करें पाठ
पाठ करना बहुत आसान है. स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहन कर पूजा के आसन पर बैठ जाएं. हनुमान जी को धूप दीप दिखाएं और प्रसाद भोग चढ़ाएं, इसके बाद पाठ करें. जो भी कामना है पाठ के बाद उसे जरूर मन में रखते हुए हनुमान जी से प्रार्थना करें. इससे आपको लाभ प्राप्त होगा. 


यह है संकट मोचन हनुमान अष्टक पाठ
बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।


को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।


बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।


कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।


अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।


जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।


रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।



बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।


रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो


बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।


काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।


।। दोहा। ।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।


जय श्रीराम, जय हनुमान, जय हनुमान।


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